

कोलकाता: धर्मेंद्र, जिन्होंने दशकों तक हिंदी सिनेमा पर राज किया, 2004 में अचानक फिल्मों से राजनीति की ओर मुड़ गए। उन्होंने राजस्थान के बीकानेर से बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा और अपनी लोकप्रियता, सरल स्वभाव और पंजाबी अंदाज के दम पर भारी अंतर से जीत दर्ज की।
लेकिन संसद में पहुँचने के बाद उनकी चमक फीकी पड़ने लगी। कम उपस्थिति और सीमित हस्तक्षेप को लेकर उन पर सवाल उठे। इस पर उनका कहना था कि वे हमेशा अपने क्षेत्र के मुद्दों पर काम करते रहे—सुर सागर की सफाई हो, स्कूल फीस कम करवाना या पुल और थिएटर का नवीनीकरण—वे सब पर ध्यान देते रहे। राजनीति का अनुभव उन्हें भीतर से झकझोर गया था।
बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि राजनीति उनकी दुनिया नहीं थी। 2010 में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राजनीति में आने का फैसला लेते ही उन्हें पछतावा हुआ और उन्हें घुटन महसूस होती थी। 2009 में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ और उन्होंने दोबारा चुनाव नहीं लड़ा। उनकी पत्नी हेमा मालिनी और बेटे सनी देओल ने बाद में चुनाव लड़े और हर बार धर्मेंद्र ने एक पिता और साथी की भूमिका निभाते हुए उनका मनोबल बढ़ाया।
2019 में सनी देओल के लिए उन्होंने मंच से कहा, मैं भाषण नहीं देता, बस दिल की बात करता हूँ। किसानों के मुद्दों पर भी उनका दिल पिघलता रहा। 2020 के किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकार से समाधान निकालने की अपील की, हालांकि नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के चलते पोस्ट हटा दी। अभिनय से राजनीति तक का धर्मेंद्र का सफर भावनाओं, संघर्ष, ईमानदारी और जनता से जुड़े रहने की दास्तान बनकर रह गया।