

कोलकाता: आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले के एक छोटे से कस्बे तेनाली का नाम आज उत्तर 24 परगना के हाबरा–मसलन्दपुर–फुलतला इलाके में गर्व से लिया जाता है। वजह फुलतला की बहू ए.एम. (एनामाद्रि) सुनीता दास हैं। कराटे ब्लैक बेल्ट सुनीता की असली पहचान समाजसेवा और महिला सशक्तीकरण का विशाल कार्य है।
सुनीता ने आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण परिवारों की महिलाओं को संगठित कर अनेक स्व–सहायता समूह बनाए। उन्हें हाथों–हाथ काम सिखाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया। आज ये महिलाएं अपने घर संभालने के साथ–साथ बच्चों को पढ़ा रही हैं, स्वयं कमाई कर सम्मान से जी रही हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की 'माटी उत्सव' में सुनीता एक प्रमुख चेहरा रही हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सुनीता ने दिखा दिया कि ढेंकी और पारंपरिक घरेलू कौशल भी आर्थिक स्वावलंबन का हथियार बन सकते हैं। हालांकि उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी। समाजिक विरोध, लगातार दबाव, यहां तक कि बदमाशों के हमले भी सहने पड़े। बावजूद इसके, वे अडिग रहीं। सुनीता कहती हैं, 'जब किसी महिला को अपने पैरों पर खड़ा होते देखती हूं, मन को शांति मिलती है।'
सुनीता की पढ़ाई आर्थिक समस्याओं के कारण नौवीं से आगे नहीं बढ़ सकी, पर पिता—शिक्षक एनामाद्रि मुसालैया से उन्होंने सेवा–भाव सीखा। 1980 में सुनीता विवाह के बाद बंगाल आईं, लेकिन भाषा न जानने के कारण उपहास सहना पड़ा। जिद के बल पर स्लेट–पेंसिल से बांग्ला सीखा और फिर गांव की गरीब महिलाओं को भी साक्षर बनाना शुरू किया। 2001 में सुनीता ने ‘सारदा’, ‘निवेदिता’ और ‘मातंगिनी’ जैसे समूह बनाए।
बाद में ‘सानिमा फूड प्रोडक्ट’ और कई अन्य इकाइयाँ विकसित हुईं, जहां महिलाओं को मसाला, बड़ी, पापड़, अचार, कपड़े, बैग आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। आज वे पूरे बंगाल में 100 से ज़्यादा समूहों को मार्गदर्शन दे रही हैं। 2015 में उन्होंने ‘जन्मभूमि महिला स्व–सहायता समूह’ खड़ा किया।
राजनीति में आईं और पंचायत सदस्य भी चुनी गईं। सुनीता आज उत्तर 24 परगना में 'पिठे–पुलि दीदी' नाम से जानी जाती हैं। उनके बनाए पिठे की तारीफ़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर अभिनेत्री विद्या बालन तक ने की है। कुम्भ मेले में उनके ‘लाइव पिठे’ ने धूम मचा दी थी। सुनीता का सपना सरल है—'चाहती हूं भारत की हर एक बेटी आत्मनिर्भर बने, अपने पैरों पर खड़ी हो। यही मेरा जीवन–संकल्प है।'