नयी दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता है और सरकार को ‘वक्फ बाई यूजर’ सिद्धांत का उपयोग करके वक्फ घोषित की गयी संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने का कानूनन अधिकार है।
'वक्फ बाई यूजर’
‘वक्फ बाई यूजर’ से आशय ऐसी संपत्ति से है जहां किसी संपत्ति को औपचारिक दस्तावेज के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दलीलों का जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश करना शुरू किया।
मेहता ने कहा : किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया
मेहता ने कहा कि किसी को भी सरकारी जमीन पर दावे का अधिकार नहीं है। शीर्ष न्यायालय का एक फैसला है, जिसमें कहा गया है कि अगर संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है। शुरुआत में शीर्ष विधि अधिकारी मेहता ने कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया है और किसी ने इस तरह का मामला नहीं रखा है कि संसद के पास इस कानून को पारित करने की क्षमता नहीं है।
मामले की सुनवाई जारी
मामले की सुनवाई जारी है। पीठ ने याचियों की इन दलीलों पर केंद्र से जवाब मांगा कि जिलाधिकारी के पद से ऊपर का कोई अधिकारी वक्फ संपत्तियों पर इस आधार पर दावा तय कर सकता है कि वे सरकारी हैं। मेहता ने कहा कि यह न केवल भ्रामक है बल्कि एक गलत तर्क है। केंद्र ने अपने लिखित नोट में अधिनियम का दृढ़ता से बचाव करते हुए कहा कि वक्फ अपनी प्रकृति से ही एक ‘धर्मनिरपेक्ष अवधारणा’ है और इस कानून पर रोक नहीं लगायी जा सकती क्योंकि इसके पक्ष में ‘सांविधानिकता की धारणा’ है। पीठ ने मंगलवार को ‘कानून के पक्ष में सांविधानिकता की धारणा’ को रेखांकित किया था और कहा कि वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत के लिए ‘मजबूत और स्पष्ट’ मामले की आवश्यकता है।