जलशोधन के लिए मशरूम अपशिष्ट का उपयोग, टिकाऊ समाधान विकसित

जाने क्या है पूरा मामला
जलशोधन के लिए मशरूम अपशिष्ट का उपयोग, टिकाऊ समाधान विकसित
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नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने परंपरागत अपशिष्ट जल शोधन विधियों का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प विकसित किया है जिसमें ‘स्पेंट मशरूम वेस्ट’ (मशरूम की कटाई के बाद बचा अपशिष्ट) से तैयार ‘बायोचार’ और एक प्राकृतिक एंजाइम ‘लैकेस’ का उपयोग किया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

बायोचार एक प्रकार का चारकोल है, जिसे बायोमास जैसे कि लकड़ी, कृषि अपशिष्ट और अन्य जैविक पदार्थों को उच्च तापमान पर, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गर्म करके बनाया जाता है। जलशोधन के लिए मशरूम अपशिष्ट का उपयोग करने की इस तकनीक को ‘भीमा’ नाम दिया गया है जो लैकेस एंजाइम की सहायता से अपशिष्ट जल से एंटीबायोटिक तत्वों को हटाने का कार्य करती है और पारंपरिक विधियों में उत्पन्न होने वाले विषैले उप-उत्पादों से बचा जा सकता है। इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित ‘जर्नल ऑफ इनवायरमेंट मैनेजमेंट’ में प्रकाशित हुए हैं। यह नव विकसित प्रणाली ‘विश्वकर्मा पुरस्कार-2024’ की ‘जल स्वच्छता’ विषयवस्तु के अंतर्गत अंतिम सूची में चयनित हुई है।

आईआईटी, गुवाहाटी के कृषि एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी स्कूल के प्रमुख सुदीप मित्रा ने बताया कि उनकी शोध टीम ने अस्पतालों के अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट और सतही जल में सामान्यतः पाए जाने वाले ‘फ्लोरोक्विनोलोन’ समूह के हानिकारक एंटीबायोटिक्स जैसे ‘सिप्रोफ्लॉक्सासिन’, ‘लेवोफ्लॉक्सासिन’ और ‘नॉरफ्लॉक्सासिन’ को हटाने का लक्ष्य बनाया। उन्होंने कहा, ‘पारंपरिक अपशिष्ट जल शोधन विधियां महंगी होती हैं और द्वितीयक प्रदूषक उत्पन्न करती हैं।

इसके विपरीत, हमारा तरीका प्राकृतिक एंजाइम लैकेस का उपयोग करके प्रदूषकों को विघटित करता है।’ पीएचडी शोधकर्ता अनामिका घोष ने कहा, ‘इस तकनीक की एक अन्य विशेषता यह है कि विघटन प्रक्रिया में जो उप-उत्पाद बने, वे विषैले नहीं हैं जिससे यह तकनीक पर्यावरण के लिए सुरक्षित और टिकाऊ समाधान के रूप में देखी जा सकती है।’ यह अनुसंधान आईआईटी-गुवाहाटी में जैव विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर लता रंगन और उनके छात्रों के सहयोग से किया गया है। अनुसंधान दल ने हाल में किसानों के लिए बायोचार तैयार करने और कृषि के लिए इसके अनेक लाभों पर एक व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया। मोरीगांव जिला कृषि कार्यालय के सहयोग से उसके कार्यालय परिसर में आयोजित इस प्रशिक्षण सत्र में कुल 30 स्थानीय किसानों ने भाग लिया।

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