नयी दिल्ली : भारत में बाल स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों ने लोगों में उम्मीद जगाते हुए कहा कि केवल एक गुर्दे के साथ जन्म लेने वाले बच्चे उचित देखभाल और नियमित निगरानी और माता-पिता के पूर्ण समर्थन से पूरी तरह स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इस स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में ‘यूनिलेटरल रीनल एजेनेसिस’ कहा जाता है। विश्व स्तर पर लगभग 1,000 में से एक शिशु केवल एक गुर्दे के साथ पैदा होता है जबकि 1,000 में से एक शिशु ऐसा भी जन्म लेता है, जिसके शरीर में होते दो गुर्दे हैं लेकिन केवल एक ही ठीक से काम कर रहा होता है।
क्या कहते हैं डाॅक्टर?
यह निदान हालांकि शुरू में चिंता का विषय हो सकता है लेकिन चिकित्सा पेशेवरों ने इस बात पर जोर दिया कि एक स्वस्थ गुर्दा, दो के मुकाबले भी सही से काम करने में सक्षम है। विशेषज्ञों ने बताया कि शरीर में काम रहा एक गुर्दा अक्सर क्षतिपूर्ति की बड़ी जिम्मेदारी संभालता है, जिसे ‘कंपन्सेटरी हाइपरट्रॉफी’ कहते हैं। गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में बाल शल्य चिकित्सा और बाल मूत्रविज्ञान विभाग के निदेशक डॉ. संदीप कुमार सिन्हा ने बताया कि जब माता-पिता को पता चलता है कि उनके बच्चे के शरीर में एक ही गुर्दा है, तो वे अक्सर चिंतित हो जाते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चे बिना किसी जटिलता के बड़े हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि नियमित जांच और जीवनशैली में कुछ सावधानियों के साथ वे अन्य बच्चों की तरह ही गतिविधियों और अवसरों का आनंद ले सकते हैं।
प्रसवपूर्व इमेजिंग से पता चल जाता है बच्चे का हाल
प्रसवपूर्व इमेजिंग के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण अब कई मामलों का पता बच्चे के जन्म से पहले ही चल जाता है, जिससे परिवार पहले दिन से ही उचित देखभाल के लिए तैयारी कर सकते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ रक्तचाप और मूत्र प्रोटीन के स्तर की वार्षिक जांच की सलाह देते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गुर्दा लंबे समय तक स्वस्थ रहे। ये जांच किडनी पर पड़ने वाले तनाव के शुरुआती लक्षणों, जैसे प्रोटीन रिसाव या उच्च रक्तचाप, का पता लगाने में मदद करती हैं, जिनका समय पर पता चलने पर प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जा सकता है। डॉ. सिन्हा ने बताया कि नियमित निगरानी जरूरी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों को सावधानी नहीं बरतनी होगी।
विशेष आहार या प्रतिबंधों की आवश्यकता नहीं
एक गुर्दे वाले बच्चों को आमतौर पर विशेष आहार या प्रतिबंधों की आवश्यकता नहीं होती है। चिकित्सकों के अनुसार अधिकांश खेल सुरक्षित हैं हालांकि मार्शल आर्ट जैसे खेलों में सुरक्षात्मक उपकरणों या चिकित्सा मार्गदर्शन की आवश्यकता हो सकती है। फुटबॉल, तैराकी और साइकिलिंग जैसी गतिविधियों को आम तौर पर प्रोत्साहित किया जाता है क्योंकि ये शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं।