टाइपराइटर बन रहा इतिहास, डिजिटल युग में मिट रही एक पुरानी पहचान

सिमटता जा रहा टाइपराइटर का कारोबार, 70 से 80% कम हुई मांग कभी दिन भर काम की लाइन लगी रहती थी, आज घंटों इंतजार के बाद मिलते हैं कुछ पन्ने
टाइपराइटर बन रहा इतिहास, डिजिटल युग में मिट रही एक पुरानी पहचान
Published on

प्रगति, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : अब टाइपराइटर के खटर-पटर की आवाज काफी कम सुनाई देती है या यूं कह सकते हैं कि टाइपराइटर बीते दिनों की बात हो गई है। एक समय में सरकारी दफ्तरों, वकीलों के चैंबर और रेलवे सहित कई विभागों में टाइपराइटर की आवाज सुनी जाती थी, लेकिन आज वही टाइपराइटर धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है। इसकी जगह आधुनिक कंप्यूटरों ने ले ली है। डिजिटल युग में कंप्यूटर और लैपटॉप के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल के बीच टाइपराइटर की मांग लगातार घटती जा रही है। हालांकि आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो दफ्तरों के बाहर बैठकर टाइपराइटर पर काम करके अपनी जीविका चलाते हैं। ऐसे ही कुछ टाइपिस्टों ने बताया कि पहले के मुताबिक अब टाइपराइरटर की मांग 70 से 80% कम हो गई है। कंप्यूटर आ जाने के बाद लोग ज्यादातर काम उसी के माध्यम से करवाने लगे हैं। पहले जहां सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती थी, वहीं अब ऐसा हो गया है कि पूरे दिन में कुछ ही काम आते हैं।

एक पन्ना टाइप करने के लिए मात्र 20 रुपये

डलहौसी स्थित कोर्ट के बाहर टाइपराइटर लेकर बैठे टाइपिस्टों ने बताया कि वह एक पन्ना टाइप करने के लिए मात्र 20 रुपये लेते हैं। उन्होंने बताया कि बदलते समय के साथ टाइपराटर की मांग बहुत कम हो गई है। अब ज्यादातर लोग दस्तावेज संबंधित काम कंप्यूटर पर करवा लेते हैं, जिसे हमारा मार्केट बहुत खराब हो गया है। पूरे दिन में मात्र 300 से 400 रुपये की कमाई हो पाती है, ऐसे में घर चलाना तक मुश्किल है। टाइपिस्टों ने बताया कि वे काेर्ट संबंधित ड्राफ्ट, बेल याचिकाएं और अन्य दस्तावेज को टाइप करते हैं, मगर आधुनिकता के दौर में हमारा काम काफी पीछे रह गया है। टाइपिस्टों ने बताया कि अगर टाइपराइटर का काेई पार्ट्स खराब हो जाता है, तो काफी मुश्किल से मिल पाता है या कई बार इसे खुद ठीक करना पड़ता है। मार्केट में काफी ढूंढने के बाद सामान मिल पाता है।

क्या कहा टाइपिस्टों ने?

अमित मुखर्जी, जो एक टाइपिस्ट हैं,ने बताया कि वह बीते लगभग 50 सालों से टाइपिस्ट का काम कर रहे हैं। हालांकि दिन प्रतिदिन इसकी मांग कम होती जा रही है। पूरा दिन काम करने के बाद भी कमाई वैसी नहीं होती है। मुंशी तालुकदार ने बताया कि टाइपराइटर की मांग बहुत कम हो गई है, क्योंकि अब ज्यादातर काम कंप्यूटर पर हो जाता है। उन्होंने कहा कि वह बिराटी से आते हैं और लगभग 37 सालों से यहां टाइपिस्ट का काम कर रहे हैं। प्रसाद कुमार साहा ने बताया कि 50 से 60% तक काम में कमी आ गई है। पूरे दिन में ज्यादा से ज्यादा 500 से 600 रुपये ही कमा पाते हैं। ए.के. नस्कर ने बताया कि कोई अन्य उपाय नहीं होने की वजह से अब भी टाइपिस्ट का काम कर रहे हैं, मगर कमाई काफी कम होती है।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in