
कोलकाता: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए ‘स्पेशल इंटेंसिव रिविजन’ (एसआईआर) कार्यक्रम को लेकर देश की राजनीति गरमा गई है। इस प्रक्रिया के तहत वर्ष 2003 की वोटर लिस्ट को आधार मानकर पुराने मतदाताओं को कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा, जबकि नए मतदाताओं को ‘एनुमरेशन फॉर्म’ (ईएफ) के साथ नागरिकता के प्रमाण देने होंगे। तृणमूल कांग्रेस ने इस प्रक्रिया को 'एनआरसी की भूमिका' करार देते हुए कड़ी आपत्ति जतायी है।
इसे मनमाना और असंवैधानिक बताया गया है
पार्टी ने अपने एक्स हैंडल पर कहा कि यह कदम देश की चुनावी अखंडता को खतरे में डाल सकता है और लाखों नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकता है। पार्टी की मांग है कि 2003 नहीं, बल्कि 2024 को आधार वर्ष माना जाए और नई मतदाता प्रविष्टियों को लेकर शिथिलता बरती जाए। तृणमूल ने यह भी मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लेकर समीक्षा करे। उल्लेखनीय है कि बिहार की एक संस्था ने शनिवार को इस संशोधन प्रक्रिया के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दायर की है, जिसमें इसे मनमाना और असंवैधानिक बताया गया है। इस पूरे मसले पर कांग्रेस ने भी आयोग की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस का कहना है कि 2003 में जो विशेष संशोधन हुआ था, वह लोकसभा चुनाव के एक साल और विधानसभा चुनाव के दो साल पहले हुआ था जबकि वर्तमान संशोधन केवल कुछ महीने पहले हो रहा है, जिससे यह प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और संविधान विरोधी प्रतीत होती है। वर्तमान में आयोग के अनुसार बिहार में 87 प्रतिशत मतदाताओं को ईएफ फॉर्म दिए जा चुके हैं। इसे लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गया है। इस संबंध में पार्टी सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए इसे 'बेहद समझौतावादी' करार दिया।