कोलकाता : 130वें संविधान संशोधन विधेयक (सीएबी) पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से तृणमूल कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया है। इस नये विधेयक के अनुसार, अगर किसी मंत्री को किसी गंभीर आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और वह लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो आरोपित को अपना मंत्रिमंडल खोना पड़ेगा। इसमें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों को भी बख्शा नहीं जाएगा।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब इस समिति का हिस्सा नहीं बनेगी। शनिवार को एआईटीसी की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है, हम 130वें संविधान संशोधन विधेयक का विरोध करते हैं। हमारे विचार में जेपीसी महज एक दिखावा है। इसलिए तृणमूल कांग्रेस इस समिति में किसी सदस्य को नामित नहीं करेगी। पार्टी का कहना है कि विधेयक को पेश किये जाने के स्तर पर ही उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया है।
तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार लोकतंत्र की मूल भावना को कमजोर करने की कोशिश कर रही है और जेपीसी केवल एक औपचारिकता भर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल का यह रुख संसद में विपक्षी दलों के बीच एक नये समीकरण को जन्म दे सकता है। दूसरी ओर, पार्टी ने केंद्र से मांग की है कि वह जनता की भावनाओं और संवैधानिक मर्यादा का सम्मान करते हुए इस विधेयक को वापस ले।
इस फैसले के बाद संविधान संशोधन विधेयक पर संसद में बहस और भी तेज होने की संभावना है। इस उथल-पुथल के बीच, राजनीतिक हलकों में तृणमूल के इस फैसले को एख संकेत माना जा रहा है। क्या इंडिया गठबंधन के अन्य सहयोगी दल भी इसी राह पर चलेंगे? अब सबकी निगाहें इसी पर टिकी हैं।