

कोलकाता: बिहार की परंपराओं में कुछ स्वाद ऐसे रचे-बसे हैं जो केवल व्यंजन नहीं, बल्कि भावनाओं और संस्कारों की कहानी कहते हैं। ऐसा ही एक नाम है ‘ठेकुआ’, जो हर साल छठ पूजा के समय घर-घर में सुगंध बिखेर देता है। समय बदल गया, रसोई के तरीके आधुनिक हो गए, पर ठेकुआ की खुशबू आज भी वैसी ही है जैसी दादी-नानी के जमाने में हुआ करती थी। यह बिहार की वह पारंपरिक मिठाई है जो अपनी सादगी और धार्मिक महत्ता के कारण आज बिहार की पहचान बन चुकी है। मिठास ऐसी कि लोकगीतों में भी इसकी गूंज सुनाई देती है—खेसारी लाल यादव का ‘घरे-घरे ठेकुआ छनाता’ या रंजीत यादव का ‘ठेकुआ छनाला छठी मैया के', ये गीत इस मिठाई के सांस्कृतिक महत्व को और गहराई देते हैं। कवयित्री अमिता पॉल की पंक्तियाँ 'लीप-पोत चूल्हा में लकड़ी जलाई / गईया के घी डाल चढ़ी जो कड़ाही' इस पारंपरिक पकवान की आत्मा को बखूबी बयां करती हैं।
छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद
ठेकुआ केवल मिठाई नहीं, बल्कि छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है, जिसमें लोग सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। पूजा के लिए तैयार किया जाने वाला ठेकुआ घर के भीतर, पूरी शुद्धता और श्रद्धा के साथ बनाया जाता है। आज भी लोग मिट्टी के चूल्हे पर, आम की लकड़ी से आग जलाकर, गाय के घी में इसे तलते हैं। गेहूं के आटे, गुड़ या चीनी, सूखे मेवे, सौंफ, नारियल के बुरादे और इलायची से बनने वाला यह देसी कुकी जैसा पकवान स्वाद के साथ-साथ ऊर्जा का भी स्रोत है। दूध या मलाई वाली मिठाइयों की तरह इसे रेफ्रिजरेटर में रखने की जरूरत नहीं पड़ती और यह महीनों तक सुरक्षित रहता है।
रसोई घर से विश्व बाजार तक
हालांकि यह पवित्र मिठाई परंपरागत रूप से घरों में ही बनाई जाती रही है, लेकिन ग्लोबलाइजेशन और कामर्शियलाइजेशन के इस दौर में अब यह आधुनिक रूप में भी उपलब्ध है। विभिन्न ई-कॉमर्स पोर्टल्स जैसे ब्लिंकिट, अमेजन और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ठेकुआ अब अलग-अलग आकारों और पैकेट्स में ग्राहकों तक पहुँच रहा है। महानगर की प्रसिद्ध ‘गुप्ता ब्रदर्स’ के मनोज अग्रवाल ने बताया, अब ठेकुआ सिर्फ हिंदी भाषी लोगों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बंगाली ग्राहकों में भी इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है। हमारे यहाँ ग्राहकों की मांग काफी अधिक है, जो असलियत और गुणवत्ता पर निर्भर करती है।” उन्होंने आगे बताया कि दुकान में दो तरह के ठेकुआ उपलब्ध हैं —देशी घी वाला ठेकुआ (800 रुपये प्रति किलो), रिफाइंड ऑयल वाला ठेकुआ (600 रुपये प्रति किलो) है। वहीं, जादवपुर स्थित ‘लिट्ठीघर’ के सौरव कुमार का कहना है, हम कभी भी गुणवत्ता से समझौता नहीं करते। साथ ही, हम यह भी ध्यान रखते हैं कि यह आम ग्राहकों के लिए बजट फ्रेंडली बना रहे। आखिरकार, ठेकुआ न केवल बिहार का गर्व है, बल्कि यह परंपरा, आस्था और अपनापन का प्रतीक भी है, एक ऐसी मिठाई जो हर छठ पर रिश्तों को और मीठा बना देती है।