आरजी कर मामले से सुप्रीम कोर्ट हटा, कलकत्ता हाईकोर्ट को किया स्थानांतरित

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मामले को पश्चिम बंगाल की संवैधानिक अदालत देख सकती है।
आरजी कर मामले से सुप्रीम कोर्ट हटा, कलकत्ता हाईकोर्ट को किया स्थानांतरित
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नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षु चिकित्सक के बलात्कार और हत्या के मामले को अपने आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए बुधवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मामले के कागजात उच्च न्यायालय को भेजने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि स्थिति रिपोर्ट की एक प्रति मृतका के माता-पिता को दी जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने 2024 में इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया था।

जूनियर और सीनियर चिकित्सकों के संघ का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा कि शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय सहमति बनाने की आवश्यकता को पहचानते हुए एक राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) का गठन किया था।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध

उन्होंने कहा, ‘‘मैं पश्चिम बंगाल के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व कर रही हूं। चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए प्रभावी सिफारिशें तैयार करने हेतु एनटीएफ का गठन किया गया था। इस मामले को निपटाने के लिए केवल एक सुनवाई ही पर्याप्त है।’’

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मामले को पश्चिम बंगाल की संवैधानिक अदालत देख सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले को कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ को भेजना उचित समझते हैं और मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वह इस मामले को उपयुक्त पीठ के पास भेजें।’’

संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा

स्नातकोत्तर प्रशिक्षु चिकित्सक का शव पिछले साल नौ अगस्त को अस्पताल के सेमिनार कक्ष में मिला था। कोलकाता पुलिस ने अगले दिन मामले के संबंध में नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को गिरफ्तार किया था। कोलकाता की एक निचली अदालत ने 20 जनवरी को रॉय को इस मामले में ‘‘आजीवन कारावास’’ की सजा सुनाई। इस अपराध ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था और पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन हुए थे। उच्चतम न्यायालय मामले में प्राथमिक दोषसिद्धि के बाद भी चिकित्सकों की अनधिकृत अनुपस्थिति को नियमित करने सहित कई सहायक मुद्दों पर गौर कर रहा है।

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अलग कानून की जरूरत नहीं

पिछले साल नवंबर में एनटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए एक अलग केंद्रीय कानून की आवश्यकता नहीं है। यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के हलफनामे का हिस्सा है।

समिति ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत गंभीर अपराधों के अलावा मामूली अपराधों से निपटने के लिए राज्य के कानूनों में पर्याप्त प्रावधान हैं। कई सिफारिशों में एनटीएफ ने कहा कि 24 राज्यों ने स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाए हैं। साथ ही ‘‘स्वास्थ्य देखभाल संस्थान’’ और ‘‘चिकित्सा पेशेवर’’ शब्दों को परिभाषित किया है।

मामले की जांच सीबीआई ने की थी

इस मामले की जांच पहले कोलकाता पुलिस ने की थी लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस की जांच पर असंतोष व्यक्त किए जाने के बाद 13 अगस्त को इसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया।

इसके बाद 19 अगस्त, 2024 को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की निगरानी का जिम्मा संभाला।

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