
कोलकाता : भारत में हर 10 में से 1 बच्चा अस्थमा (दमा) से पीड़ित है और मौसमी बदलाव उनके लिए गंभीर चुनौती बनते हैं। परागकण, धूल, फफूंदी और वायरस जैसे फ्लू या न्यूमोनिया इस मौसम में ज्यादा सक्रिय होते हैं, जिससे बच्चों में दमा के लक्षण बढ़ जाते हैं। इससे उनकी दिनचर्या प्रभावित होती है। स्कूल से छुट्टियाँ, शारीरिक गतिविधियों में कमी और डॉक्टर के पास बार-बार जाना आम हो जाता है। एलर्जी और दमा का गहरा संबंध है।
जब बच्चों की रोग प्रतिरोधक प्रणाली किसी एलर्जन से संपर्क में आती है, तो शरीर हिस्टामिन जैसे रसायन छोड़ता है जिससे नाक बहना, आंखों में खुजली और खांसी जैसे लक्षण होते हैं। दमा पीड़ित बच्चों में इससे सांस नली में सूजन और बलगम बढ़ जाता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति से बचाव के लिए माता-पिता की भूमिका अहम होती है। वे एलर्जी ट्रिगर्स की पहचान करें और बच्चों को उनसे दूर रखें।
जैसे पोलन काउंट अधिक होने पर बाहर जाने से बचें, घर की हवा साफ रखें, और नमी वाली जगहों पर फफूंदी ना पनपने दें। पीक फ्लो मीटर से फेफड़ों की कार्यक्षमता की निगरानी कर शुरुआती लक्षण पहचाने जा सकते हैं। डॉक्टर की मदद से व्यक्तिगत अस्थमा एक्शन प्लान बनाएं और दवाइयों व इन्हेलर का सही प्रयोग सुनिश्चित करें।