नमकीन से अलग है बंगाल का 'चनाचूर' स्वाद का इतिहास !

विश्वभर में प्रसिद्धि के बाद अब GI टैग की अपील
The history of Bengal's 'Chanachur' taste is different from Namkeen!
बंगाल के चनाचूर की एक दुकान
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निधि, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता: पूरे देश में 'भुजिया' और 'मिक्स्चर' की धूम के बावजूद, बंगाल का चनाचूर (Chhanachur) अपने अनोखे खट्टे-तीखे-नमकीन स्वाद और विविधता के कारण एक अलग पहचान रखता है। माना जाता है कि प्रसिद्ध कहावत 'हरिदास के बुलबुल भाजा़, ताजा-ताज़ा खाने में मजा...' में जिस 'बुलबुल भाजा़' का जिक्र है और जिसे रानी विक्टोरिया के हुक्म पर लंदन भेजा गया था, वह दरअसल बंगाल का चनाचूर ही था। चनाचूर दाल भुजिया, झूरी भुजिया, पापड़ी, मूंगफली और खास मसालों का एक अनूठा मिश्रण है, जिसका स्वाद अन्य किसी भी क्षेत्रीय नमकीन से काफी भिन्न है। इसी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्वाद की पहचान को आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए, पश्चिम बंगाल ने 'बंगाल के चनाचूर' के लिए जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग के लिए आवेदन किया है।

इतिहास में दर्ज है चनाचूर का प्रमाण

GI टैग प्राप्त करने के लिए, आवेदक यानी 'मिष्ठी उद्योग' के सम्राट सतीश मोइरा व इससे संबंधित सारे दस्तावेज, ऐतिहासिक व अन्य जरूरी कागजी कार्यों के साथ अपील करने वाली डॉ. महुआ होम चौधरी ने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर की भतीजी सरला देवी ने अपनी आत्मकथा 'जीवनेर झड़ा पत्ता' (1879) में जिस 'आठ भाजा' उपाचार का वर्णन किया है, मिष्ठी उद्योग के अध्यक्ष धीमान दास के अनुसार, वही चनाचूर का आदि रूप है। 'अमृतलाल बसु की स्मृति और आत्मस्मृति' (1957) और साहित्यिक कृति 'रसवंती' में चनाचूर बेचने वालों और उसके 'बांगालियाना' (बंगाली पहचान) पर शोधपूर्ण जानकारी दी गई है। साथ ही प्रसिद्ध हल्दीराम परिवार के मुखिया हल्दीराम अगरवाल 1947 में कोलकाता के आकर्षण से बंध गए और यहीं से उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया, जो बंगाल के चनाचूर की लोकप्रियता को दर्शाता है। मुखरोचन के कर्णधार प्रणव चंद्र ने कहा कि बंगाल का चनाचूर अब सिर्फ एक स्नैक नहीं, बल्कि राज्य की स्वाद-संस्कृति की एक अनूठी धरोहर है, और GI टैग की स्वीकृति इसकी विशिष्ट पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित करेगी। हमें भरोसा है कि हमें जल्द ही यह टैग मिल जायेगा।

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