तहव्वुर राणा को कसाब की तरह नहीं मिल सकती मौत की सजा!

अंतरराष्ट्रीय प्रत्यर्पण संधि से बंधे भारत के हाथ, , नया मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता
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नयी दिल्ली : भारत ने मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमले के मामले में तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण में ऐसे वक्त बड़ी सफलता हासिल की है जब वकालत की दुनिया में एक अहम सवाल पर चर्चा शुरू हो गयी है कि राणा पर फिर से मुकदमा क्यों चलाया जा रहा है जबकि वह पहले ही अमेरिका में सजा काट चुका है। भारत अमेरिकाे को यह समझाने में कामयाब रहा कि राणा का प्रत्यर्पण क्यों जरूरी है। भारत ने उसके खिलाफ पूरी तरह से अलग और ज़्यादा व्यापक मामला बनाया, जो सीधे 26/11 के मुंबई हमलों पर केंद्रित था।

हमले में मारे गये थे 170 से ज़्यादा लोग

इस हमले में 170 से ज़्यादा लोग मारे गये थे। अमेरिका में तहव्वुर राणा पर आतंकवाद का समर्थन करने के आरोप लगे थे। मुंबई वाले मामले में वह आरोपों से बरी हो गया था। उसने अमेरिकी जेल में 14 साल बिताये और 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य के आधार पर रिहा कर दिया गया था।

भारत को प्रत्यर्पण संधि का पालन करना होगा

भारत की इस कामयाबी के बावजूद अजमल कसाब की तरह राणा (64) को फांसी के फंदे तक पहुंचाना संभव नहीं है। भारत को इस मामले में अंतरराष्ट्रीय प्रत्यर्पण संधि का पालन करना होगा। इसके तहत राणा को न तो फांसी की सजा दी जा सकती है और न ही उसके खिलाफ कोई नया मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

वही मुकदमा चलेगा जो प्रत्यर्पण कोर्ट के सामने लिख कर दिया गया है

भारत में राणा के खिलाफ केवल उस मामले में मुकदमा चलाया जा सकता है जो उसने प्रत्यर्पण के दौरान अमेरिकी अदालत के सामने लिखकर दिया है। भले ही राणा के खिलाफ भारत ने कई मुकदमे दर्ज कर रखे हों लेकिन उसके खिलाफ केवल वही मुकदमा चलेगा जो प्रत्यर्पण कोर्ट के सामने लिख कर दिया गया है। मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यहां तक कि इस मामले में भारत ऐसी कोई नई धारा भी नहीं जोड़ सकता जो उसने प्रत्यर्पण कोर्ट के सामने न बतायी हो। भले ही पूछताछ के दौरान वह अपने भारत में किये गये अन्य अपराधों को भी कुबूल कर ले।

जमानत तो नहीं मिलेगी, परोल भी नहीं मिलेगी

राणा को इस पूरे मामले की सुनवाई के दौरान न तो जमानत मिलेगी और न ही उसे जेल से परोल दी जायेगी। पूरे मामले की सुनवाई के दौरान उसे जेल में रहना होगा। साथ ही जो सजा उसे भारतीय अदालत देगी उसे जेल में पूरी करनी पड़ेगी लेकिन यह मौत की सजा नहीं हो सकती। राणा की तर्ज पर ही भारत सरकार कुख्यात माफिया सरगना अबू सलेम को भी प्रत्यार्पित करके लायी थी। उस मामले में भी यह स्पष्ट था कि उसे मौत की सजा नहीं दी जा सकती।

भारतीय अदालत उम्रकैद की सजा सुनाती है

साथ ही उस पर केवल वही मुकदमे चलाये गये जो प्रत्यर्पण के दौरान भारतीय एजेंसियों ने विदेशी कोर्ट को बताये गये थे। मुंबई पुलिस ने अबू सलेम के भारत आने के बाद उस पर मकोका के तहत एक नया मुकदमा दर्ज कर दिया था लेकिन बाद में मुंबई पुलिस को अपना यह मुकदमा वापस लेना पड़ा क्योंकि अबू सलेम ने उसके खिलाफ अदालत में अपील कर दी थी। राणा को यदि भारतीय अदालत उम्रकैद की सजा सुनाती है तो वह उसे भुगतनी पड़ेगी।

राणा पर आखिर मुकदमा क्यों?

राणा पर फिर से मुकदमा क्यों चलाया जा रहा है, जबकि वह पहले ही अमेरिका में सजा काट चुका है? कानून के विशेषज्ञों के अनुसार इस सवाल का जवाब अमेरिका में उसके खिलाफ लगाये गये आरोपों और भारत में उसके खिलाफ लगाये गये आरोपों के बीच बुनियादी अंतर में छिपा है। पाकिस्तान में जन्मे कनाडाई नागरिक और पाकिस्तानी सेना के पूर्व डॉक्टर तहव्वुर हुसैन राणा को 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था।

मुंबई हमलों में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने के आरोपों से बरी हो गया था!

अमेरिका की एक अदालत ने 2011 में उसे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सहायता प्रदान करने और डेनमार्क में एक नाकाम आतंकी साजिश में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था लेकिन इस दौरान उसे मुंबई हमलों में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने के आरोपों से बरी कर दिया गया था। हालांकि भारत ने उसके खिलाफ पूरी तरह से अलग और ज़्यादा व्यापक मामला बनाया, जो सीधे 26/11 के मुंबई हमलों पर केंद्रित था।

एनआईए ने राणा पर लगाये ये आरोप

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) का आरोप है कि राणा ने मुंबई हमलों में आतंकियों को वह हर सुविधा मुहैया करायी जिससे वे अपने मकसद में कामयाब हो सकें। उसने भारत के खिलाफ ‘युद्ध’ छेड़ा, जो भारतीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध है। भारत की कई यात्राओं के दौरान हेडली और लश्कर के साथ उनके कथित समन्वय के आधार पर हत्या और आतंकवाद में सहायता करना और बढ़ावा दिया। उसने 26/11 के हमलों के लिए लक्ष्य निगरानी में सहायता की, जिसमें ताज होटल और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस जैसी जगहों पर टोही मिशन शामिल हैं। भारतीय अधिकारियों द्वारा उद्धृत खुफिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि हमलों से पहले राणा कम से कम 231 बार हेडली के संपर्क में था और उसने आठ अलग-अलग निगरानी अभियानों में मदद की थी।

हेडली, आईएसआई और पाक सेना के बीच की कड़ी था राणा

राणा ने आतंकी हमले से पहले मुंबई में आतंकी हमलों के स्थानों को चिह्नित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से रेकी और जासूसी की थी, उसने जिहादी साथी दाऊद जीलानी उर्फ डेविड कोलमैन हेडली को पाकिस्तानी-अमेरिकी पासपोर्ट का उपयोग करके भारत की यात्रा करने में भी मदद की थी। इसका मकसद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के अधिकारियों के साथ तालमेल करके लश्कर ए तैयबा द्वारा रची गयी मुंबई आतंकी हमलों की साजिश को अंजाम देना था। राणा हेडली, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के बीच की कड़ी रहा है। मुंबई हमले की साजिश को लेकर तहव्वुर और हेडली के बीच कई बार फोन पर बातचीत हुई थी।

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