यदि महिलाएं राफेल उड़ा सकती हैं तो सेना की कानूनी शाखा में उनकी संख्या सीमित क्यों : कोर्ट ने केंद्र से पूछा

दो महिला अफसरों ने जेएजी शाखा के लैंगिक रूप से तटस्थ पदों पर चयन नहीं होने को दी चुनौती
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नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सेना की ‘जज एडवोकेट जनरल’ (जेएजी-विधि) शाखा में 50-50 चयन मानदंड पर सवाल उठाते हुए केंद्र से पूछा कि यदि भारतीय वायुसेना में कोई महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है तो सेना की जेएजी शाखा के लैंगिक रूप से तटस्थ पदों पर कम महिला अधिकारी क्यों हैं? शीर्ष न्यायालय ने साथ ही प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि ‘जज एडवोकेट जनरल’ (जेएजी) के रूप में नियुक्ति के लिए अगले उपलब्ध प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल करने के उद्देश्य से जो भी कार्रवाई आवश्यक है, उसे शुरू किया जाये। दो महिला अफसरों को बेहतर प्रदर्शन के बावजूद जेएजी विभाग के लिए उनका चयन नहीं किया गया।

दो महिला अफसरों का बेहतर प्रदर्शन के बावजूद चयन नहीं किया गया

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन के पीठ ने गत 8 मई को दो अधिकारियों अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी की याचिका पर यह कहते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि कि हम याची अर्शनूर कौर द्वारा प्रस्तुत मामले से प्रथमदृष्टया संतुष्ट हैं। याचियों ने अपने कई समकक्षों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर क्रमश: चौथा और पांचवां स्थान प्राप्त किया था लेकिन महिलाओं के लिए कम रिक्तियां निर्धारित होने के कारण जेएजी विभाग के लिए उनका चयन नहीं किया गया। अधिकारियों ने पुरुषों और महिलाओं के लिए ‘असंगत’ रिक्तियों को चुनौती देते हुए कहा था कि उनका चयन नहीं किया जा सका क्योंकि कुल छह पदों में से महिलाओं के लिए केवल तीन रिक्तियां थीं।

लैंगिक तटस्थता का मतलब 50:50 का अनुपात नहीं

पीठ ने एक समाचार पत्र के लेख का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि एक महिला पायलट लड़ाकू विमान राफेल उड़ायेगी। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में उसे युद्ध बंदी बनाये जाने का खतरा है। पीठ ने केंद्र और सेना की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि अगर भारतीय वायुसेना में एक महिला का राफेल लड़ाकू विमान उड़ाना स्वीकार्य है तो सेना के लिए जेएजी में अधिक महिलाओं को शामिल करने की अनुमति देना इतना मुश्किल क्यों है? पीठ को बताया गया कि कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान दूसरी याची त्यागी भारतीय नौसेना में शामिल हो गयीं। इसके बाद शीर्ष न्यायालय ने पदों के लैंगिक आधार पर तटस्थ होने का दावा करने के बावजूद महिलाओं के लिए सीमित पद निर्धारित करने के लिए केंद्र से सवाल किया।

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