सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति के लिए तय की समय-सीमा, तीन महीने के भीतर लेना होगा बिल पर फैसला

तमिलनाडु ने रचा इतिहास, राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना लागू किये 10 कानून
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नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया है कि राज्यपाल द्वारा रोके गये और राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गये विधेयकों पर उन्हें तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए। इस बीच तमिलनाडु की द्रमुक सरकार ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 10 विधेयकों को बिना राज्यपाल या राष्ट्रपति की औपचारिक सहमति के अधिनियम के रूप में अधिसूचित कर दिया है। यह कदम शीर्ष न्यायालय के हालिया फैसले के बाद उठाया गया, जिसमें इन विधेयकों को स्वतः स्वीकृत माना गया।

फैसला शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया

दरअसल चार दिन पहले शीर्ष न्यायालय ने उन 10 विधेयकों को मंजूरी दी जिन्हें तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा था। साथ ही न्यायालय ने सभी राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी। करीब 415 पन्नों का यह फैसला शुक्रवार रात 10.54 बजे शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। न्यायालय ने कहा कि हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा को अपनाना उचित समझते हैं... और निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचारार्थ सुरक्षित रखे गये विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है।

देरी की वजह बतानी होगी, राज्य को देनी होगी जानकारी

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन के पीठ ने कहा कि इस अवधि से परे किसी भी देरी के मामले में, उचित कारण दर्ज कराने होंगे और संबंधित राज्य को सूचित करना होगा। राज्यों को भी सहयोगात्मक होना चाहिए और अगर कोई प्रश्न उठाये जायें तो उनके उत्तर देकर सहयोग करना चाहिए और केंद्र द्वारा दिये गये सुझावों पर शीघ्रता से विचार करना चाहिए। पीठ ने राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को सुक्षित करने के फैसले को आठ अप्रैल को अवैध और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था।

राज्यपालों की निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन हो जायेगी

संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को उसके समक्ष प्रस्तुत विधेयक पर स्वीकृति देने, स्वीकृति रोकने या राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखने का अधिकार देता है। शीर्ष न्यायालय ने समय-सीमा निर्धारित करते हुए कहा कि इसका अनुपालन न करने पर राज्यपालों की निष्क्रियता न्यायालयों के न्यायिक समीक्षा के अधीन हो जायेगी। पीठ ने कहा कि विधेयक को मंजूरी न दिये जाने या राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे जाने की स्थिति में राज्यपाल से तत्काल कदम उठाने की अपेक्षा की जाती है, जो अधिकतम एक महीने की अवधि के अधीन है।

‘पूर्ण वीटो’ या ‘पॉकेट वीटो’ नहीं चलेगा

आदेश में कहा गया कि राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत मंजूरी न दिये जाने की स्थिति में राज्यपाल को अधिकतम तीन महीने की अवधि के भीतर एक संदेश के साथ विधेयक को वापस करना होगा। पीठ ने कहा कि राज्यपाल सहमति को रोक नहीं सकते और ‘पूर्ण वीटो’ या ‘आंशिक वीटो’ (पॉकेट वीटो) की अवधारणा नहीं अपना सकते।

सिब्बल ने फैसले की सराहना की

पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए अब केंद्र सरकार जानबूझ कर राज्यों के विधेयकों पर फैसला लेने में देरी नही करवा सकेगी। उन्होंने कहा कि अटार्नी जनरल ने समय-सीमा निर्धारित करने के निर्णय का विरोध किया था लेकिन शीर्ष न्यायालय ने सरकार के विरोध को खारिज कर दिया।

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