

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक व्यक्ति की उस याचिका पर दो जून को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की जिसमें उसने दावा किया है कि बांग्लादेश में गुप्त निर्वासन के व्यापक आरोपों के बीच उसकी मां को असम पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर के पीठ ने याची युनूस अली का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शोएब आलम की दलीलों पर गौर किया कि उनकी मां को राज्य पुलिस ने हिरासत में लिया है। पीठ ने कहा कि याचिका सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जायेगी। अली (26) ने अपनी मां मोनोवारा बेवा की तत्काल रिहाई का अनुरोध किया, जिन्हें 24 मई को बयान दर्ज करने के बहाने धुबरी पुलिस थाने बुलाकर कथित तौर पर हिरासत में लिया गया था।
आलम ने असम में जारी उस प्रथा के बारे में भी गंभीर चिंता जतायी जिसके तहत लोगों को हिरासत में लिया जाता है और रातोंरात बांग्लादेश निर्वासित कर दिया जाता है जबकि उनके कानूनी मामले लंबित रहते हैं। उन्होंने कहा कि महिला द्वारा 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की गयी है। नोटिस जारी किये गये हैं और फिर भी लोगों को निर्वासित किया जा रहा है जबकि इस अदालत में सुनवाई अभी भी जारी है। बेवा 12 दिसंबर, 2019 से उस मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद जमानत पर थी, जिसमें असम के विदेशी हिरासत शिविरों में तीन साल से अधिक समय बिताने वाले बंदियों को सशर्त रिहाई की अनुमति दी गयी थी।