नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराये गये चार लोगों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को साबित करने के लिए सिर्फ सुसाइड नोट अपने आप में काफी नहीं है बल्कि उसके साथ ठोस सुबूत जरूरी हैं।
खारिज किया गुजरात हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयां के पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 2013 के फैसले और सुनवाई अदालत के 2011 के दोषसिद्धि फैसले को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आईपीसी की धारा 306 तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि आत्महत्या के लिए उकसाने की साफ मंशा थी। पीठ ने कहा कि इस मामले में केस साबित करने के लिए यह जरूरी है कि स्पष्ट उकसावा, साजिश या जानबूझकर सहायता दी गयी हो।
सिर्फ उत्पीड़न या मतभेद पर्याप्त नहीं
अभियुक्त के पास आत्महत्या के लिए उकसाने की स्पष्ट मानसिक मंशा हो। सिर्फ उत्पीड़न या मतभेद पर्याप्त नहीं हैं, जब तक कि कोई प्रत्यक्ष एक्शन न हो जिससे आत्महत्या के लिए किसी को मजबूर होना पड़े। अभियुक्त पर आरोप था कि उसने मृतक को आपत्तिजनक तस्वीरों और विडियो के माध्यम से ब्लैकमेल किया, जिससे उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। पीठ ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को साबित करने के लिए सिर्फ सुसाइड नोट अपने आप में काफी नहीं है बल्कि उसके साथ ठोस सुबूत जरूरी हैं।
‘सुसाइड नोट को अन्य ठोस सुबूत सही ठहराएं, तो ही मान्य’
शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति यदि एक सुसाइड नोट छोड़ता है, तो वह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता जब तक कि इसे अन्य ठोस सुबूतों का समर्थन न मिले। पीठ ने कहा कि सुसाइड नोट की प्रामाणिकता साबित होनी चाहिए। इसके लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की गवाही भी जरूरी है। अभियुक्त ने तर्क दिया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं था, न ही कोई स्पष्ट उकसावा या उकसाने वाला काम था। अभियुक्त ने दावा किया कि ब्लैकमेलिंग के आरोपों का समर्थन करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास कोई ठोस सुबूत नहीं था।
सुसाइड नोट की प्रमाणिकता पर संदेह
क्या केवल सुसाइड नोट के आधार पर दोषसिद्धि संभव है? सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सुसाइड नोट मात्र एक प्रमाण होता है और इसे दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि अन्य ठोस प्रमाण उपलब्ध न हों, जो अभियुक्त के प्रत्यक्ष उकसावे को साबित करें। आईपीसी की धारा के तहत ‘उकसावे’ की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा आईपीसी की धारा 107 में दी गयी है, जिसके अनुसार अभियुक्त द्वारा स्पष्ट रूप से उकसाने, साजिश रचने, या जानबूझकर सहायता देने का प्रमाण होना आवश्यक है।
अभियोजन पक्ष को संदेह से परे यह साबित करना होगा
आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में साक्ष्य का मानकों के बारे में शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष को संदेह से परे यह साबित करना होगा कि अभियुक्त की हरकतों के कारण मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। केवल यह सिद्ध कर देना कि मृतक तनावग्रस्त था या उसे परेशान किया गया था, पर्याप्त नहीं है। सुसाइड नोट अविश्वसनीय पाया गया क्योंकि सुसाइड नोट मृतक के बड़े भाई के पास से 20 दिन बाद बरामद हुआ, जिससे उसकी प्रमाणिकता पर संदेह उत्पन्न हुआ। पुलिस को प्रारंभिक जांच के दौरान यह नोट नहीं मिला, जिससे यह और संदिग्ध हो गया।
क्या था मामला?
मामला गुजरात के मेहसाणा का है। मेहसाणा में 14 मई 2009 को एक शख्स ने जहर खा लिया था। इसके बाद उनकी मौत हो गई थी। मृतक के परिजन ने आरोप लगाया था कि मृतक की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरें ली गयी थीं और इस आधार पर उन्हें कुछ लोग ब्लैकमेल कर रहे थे। इस बात का जिक्र मृतक ने मरने से पहले लिखे पत्र में किया था। पुलिस इस बयान के आधार पर पटेल बाबूभाई मनोहर दास सहित कुल 4 लोगों को अभियुक्त बनाया। निचली अदालत ने अभियुक्तों को दोषी करार दिया। गुजरात उच्च न्यायालय ने 17 दिसंबर, 2013 को अभियुक्तों को आत्महत्या के लिए दोषी करार दिया लेकिन उच्चतम न्यायालय ने मामले में इन्हें बरी कर दिया।