
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि साइथियां पार्क और कम्यनिटी सेंटर के लिए अधिग्रहण के मामले में राज्य सरकार को ग्यारह करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान करना ही पड़ेगा। यह रकम उन लोगों को दी जाएगी जिनकी जमीन का अधिग्रहण इस योजना के लिए किया गया था। इस रकम का आकलन 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सांसद रहने के दौरान इस पार्क के लिए सांसद निधि से फंड का आवंटन किया था।
साइथियां का यह पार्क अपने जन्म लग्न से ही विवादों में उलझ गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह शापमुक्त हुआ है। एडवोकेट आशिष चौधरी बताते हैं कि यह अपने आप में नौकरशाही की लालफीताशाही का एक दिलचस्प किस्सा भी है। एडवोकेट चौधरी बताते हैं कि इस पार्क और कम्युनिटी हॉल की योजना 2016 में बनायी गई थी। नगरपालिका ने इसके लिए एक्वायरिंग बॉडी को 83 लाख रुपए का भुगतान भी कर दिया था। यह वह सरकारी महकमा है जो जमीन का अधिग्रहण करता है। रिक्वायरिंग बॉडी, यानी जिसे जमीन की जरूरत है, अपना प्रस्ताव एक्वायरिंग बॉडी को भेजता है। मुआवजा वितरण करने की जिम्मेदारी एक्वायरिंग बॉडी की है। इसने किसानों को मुआवजा नहीं दिया। एडवोकेट चौधरी कहते हैं कि इसके बाद की कहानी मुकदमेबाजी की है जो हाई कोर्ट से शुरू होकर सुप्रीम कोर्ट तक गयी थी। जमीन के मालिकों ने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। तत्कालीन जस्टिस आर के बाग ने 2016 में एक्सपार्टे आदेश दिया कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर मुआवजा दिया जाए। एडवोकेट चौधरी बताते हैं कि अब डीएम ने एक बचाव का रास्ता निकालते हुए नगरपालिका से कहा कि इस जमीन को खाली कर दें और यह जमीन इसके मालिकों को वापस लौटा दी जाएगी। पालिका इससे सहमत नहीं हुई तो जमीन के मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। इसके बीच चली कानूनी लड़ाई के कुछ और पन्ने भी हैं। मगर लब्बोलुवाब यह है कि मुआवजे का भुगतान करना पड़ेगा। इसका दूसरा पहलू यह है कि जो काम 83 लाख में निपट सकता था उसके लिए नौकरशाही के जाल में उलझ जाने के कारण अब ग्यारह करोड़ के करीब देना पड़ेगा।