नयी दिल्ली/ लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति विवाद के एक मामले में एक व्यक्ति के दत्तक पुत्र संबंधी दस्तावेज को खारिज करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह बेटियों को उनके पिता की संपत्ति पाने के अधिकार से वंचित करने का एक सोचा-समझा कदम है। न्यायालय ने 1983 में दायर दत्तक पुत्र संबंधी दस्तावेज की वैधता के प्रश्न पर निर्णय लेने में 4 दशक से अधिक समय की देरी के लिए भी खेद जताया तथा कहा कि दस्तावेज में यह अनिवार्य शर्त भी अनुपस्थित है कि बच्चा गोद लेने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी की सहमति लेनी होगी।
समारोह पूर्वक गोद लेने का किया था दावा
:जानकारी हो कि शिव कुमारी देवी और हरमुनिया उत्तर प्रदेश के निवासी भुनेश्वर सिंह की बेटियां हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। याचिकाकर्ता अशोक कुमार ने दावा किया था कि भुनेश्वर सिंह ने उन्हें उनके जैविक पिता सूबेदार सिंह से एक समारोह में गोद लिया था और अदालत के समक्ष इस दावे से संबंधित एक तस्वीर भी पेश की गई थी। कुमार ने भुनेश्वर सिंह की विरासत पर दावा किया है।
हाई कोर्ट ने याचिका कर दी थी खारिज
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने हाई कोर्ट के 11 दिसंबर, 2024 के उस आदेश के खिलाफ कुमार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें नौ अगस्त, 1967 के दत्तक पुत्र संबंधित दस्तावेज की वैधता को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा गया था कि अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था।
एक सोची-समझी चाल
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता को विस्तार से सुनने और रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 9 अगस्त, 1967 की तारीख वाला दत्तक पुत्र ग्रहण संबंधी दस्तावेज शिव कुमारी व उनकी बड़ी बहन हरमुनिया को उनके पिता की संपत्ति में कानूनी रूप से निहित अधिकार से वंचित करने के लिए एक सोची-समझी चाल के अलावा और कुछ नहीं था। पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उक्त दस्तावेज को खारिज करके सही किया है, जिसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है।