

कोलकाता: बंगाल के लगभग 1 लाख रूपांतरणकारी, रूपांतरणित और तृतीय लिंग समुदाय के सामने एसआईआर (SIR) लागू होने के बाद एक नयी जटिलता खड़ी हो गयी है। किसी का नाम बदल चुका है, किसी ने जेंडर-अफर्मेशन सर्जरी करायी है और कई लोग परिवार द्वारा बेदखल कर दिये गये हैं। ऐसे में न तो उनके पास जरूरी पहचान दस्तावेज़ हैं और न ही स्थायी पता—जिसके आधार पर वे अपनी नागरिक पहचान साबित कर सकें।
हालांकि, चुनाव आयोग की सूची में 11 तरह के दस्तावेज शामिल हैं, लेकिन ‘ट्रांसजेंडर कार्ड’ का ज़िक्र कहीं नहीं है। नाम और लिंग परिवर्तन के बाद भी बहुत से लोगों के रिकॉर्ड अपडेट नहीं हुए हैं। सवाल यह भी है कि ‘एनुमरेशन फॉर्म’ किस पता पर जाएगा और क्या बीएलओ कर्मी उनकी स्थिति समझने में सक्षम हैं? वहीं, ट्रांसजेंडर जनसंख्या को लेकर आधिकारिक और अनुमानित आँकड़ों में बड़ा अंतर है।
2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 30,349 ट्रांसजेंडर व्यक्ति दर्ज किये गये थे। हालांकि 2023 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि राज्य में उनकी संख्या बढ़कर लगभग 60,000 हो चुकी है। कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं का मानना है कि सामाजिक कलंक, भेदभाव का डर और आत्मपहचान की बाधाओं के कारण ट्रांसजेंडर समुदाय की वास्तविक संख्या आधिकारिक आँकड़ों से कहीं अधिक हो सकती है।
कोलकाता स्थित संगठन 'सैफो फॉर इक्वैलिटी' की कोयल घोष का कहना है कि एसआईआर के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं होने के कारण समुदाय बेहद असमंजस में है। कई लोग परिवार से संबंध टूटने के कारण किसी भी आधिकारिक दस्तावेज से वंचित हैं। कई परिवारों ने जन्म प्रमाणपत्र जैसे मूल दस्तावेज भी नष्ट कर दिये।
ऐसे में नये दस्तावेज़ बनवाना लंबी और कठिन प्रक्रिया है। ट्रांसजेंडर सुमति शिकायत करती हैं कि चुनाव आयोग से कई बार संपर्क करने पर भी जवाब नहीं मिला। उनका सवाल है, जिन नेताओं को हम वोट देकर सत्ता में लाये, क्या वे ही हमारी नागरिकता छीन लेंगे? समुदाय अदालत का दरवाज़ा खटखटाने पर विचार कर रहा है।