SIR से घबराए मतुआ, BJP की नागरिकता राजनीति पर उठे सवाल

SIR से घबराए मतुआ, BJP की नागरिकता राजनीति पर उठे सवाल
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केडी पार्थ, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बीच मतुआ समुदाय में गहरी बेचैनी और आक्रोश देखा जा रहा है। बनगांव–राणाघाट इलाके से उठता नारा— “कोई BJP नहीं, कोई तृणमूल नहीं” —यह संकेत देता है कि नागरिकता और वोटिंग अधिकार के सवाल पर मतुआ अब राजनीतिक दलों से दूरी बना रहे हैं। इस पूरे संकट के केंद्र में BJP की नागरिकता राजनीति और SIR प्रक्रिया को लेकर बढ़ता अविश्वास है।

90 फीसदी मतुआओं को सुनवाई के लिए बुलाने की आशंका

ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के संघाधिपति सुब्रत ठाकुर ने दावा किया है कि बनगांव सबडिवीजन के मतुआगढ़ इलाके में करीब 90 प्रतिशत मतुआ लोगों को SIR सुनवाई के लिए बुलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अधिकांश मतुआ लोगों के पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं, जिनकी मांग की जा रही है, और उनके लिए एकमात्र सुरक्षा नागरिकता है।

BJP की नागरिकता गारंटी पर सवाल

मतुआ नेताओं का कहना है कि BJP वर्षों से नागरिकता का भरोसा देती आई है, लेकिन जमीनी स्तर पर मतुआ आज भी असुरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद यह साफ हो गया है कि केवल नागरिकता के लिए आवेदन करने से वोटर लिस्ट में नाम शामिल नहीं होगा। इससे BJP के नागरिकता वादों पर सवाल और गहरे हो गए हैं।

SIR सुनवाई से बढ़ी दहशत

चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, मतुआ प्रभावित बनगांव सबडिवीजन के चार विधानसभा क्षेत्रों में 1 लाख 34 हजार से ज्यादा वोटरों को SIR सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा। इनमें बड़ी संख्या मतुआ समुदाय की है। वैध कागजात की कमी के चलते समुदाय में यह डर बढ़ रहा है कि कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से बाहर न हो जाए।

‘कोई BJP नहीं, कोई तृणमूल नहीं’ का नारा

मतुआ इलाकों में अब राजनीतिक दलों से दूरी का संदेश देने वाला नारा तेज हो गया है। आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि BJP और तृणमूल—दोनों ने ही मतुआ समुदाय का इस्तेमाल केवल वोट बैंक की तरह किया, लेकिन उनकी मूल समस्याओं का समाधान नहीं हुआ।

ठाकुर परिवार की राजनीति से नाराज़गी

एक मतुआ भक्त ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ठाकुर परिवार को राजनीतिक रूप से बांटने से मतुआ समाज की भावनाओं को गहरी चोट पहुंची है। BJP और अन्य दलों की आपसी राजनीति ने समुदाय को और कमजोर किया है।

नागरिकता सर्टिफिकेट पर विरोधाभास

मतुआ नेताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग की 11 दस्तावेज़ों की सूची में नागरिकता सर्टिफिकेट का उल्लेख नहीं है, जबकि BJP दावा कर रही है कि नागरिकता मिलने से वोटिंग अधिकार सुरक्षित हैं। इस विरोधाभास ने समुदाय में भ्रम और अविश्वास को और बढ़ा दिया है।

बड़े वोट बैंक पर संकट

पश्चिम बंगाल में 2.5 से 3.5 करोड़ की आबादी वाले मतुआ समुदाय का प्रभाव करीब 100 विधानसभा सीटों पर है। ऐसे में BJP की नागरिकता राजनीति और SIR प्रक्रिया को लेकर उठ रहे सवाल आने वाले चुनाव में बड़ा राजनीतिक असर डाल सकते हैं। मतुआ समुदाय अब खुलकर कह रहा है—नागरिकता और वोट का सवाल राजनीति से ऊपर है।

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