

कोलकाता: पिछले वर्ष हिंदी संगीत जगत को गहरा आघात लगा, जब मशहूर लोक गायिका और ‘बिहार कोकिला’ शारदा सिन्हा का छठ पर्व के दिन निधन हो गया। उनकी संगीत विरासत को अब आगे बढ़ा रही हैं धनबाद की बंगाली गायिका अनिंदिता बनर्जी जो अपनी अनोखी शैली में छठ गीतों को नयी पहचान दे रही हैं।
'बांग्ला छठ गीतों’ की रचयिता अनिंदिता एकमात्र ऐसी गायिका हैं जो बंगाली और भोजपुरी दोनों भाषाओं में छठ गीत गाती हैं। सेमी-क्लासिकल पृष्ठभूमि की अधेड़ उम्र की यह कलाकार बिहारी लोक संगीत के जगत में अब एक जाना-पहचाना नाम बन चुकी हैं। उनका प्रसिद्ध गीत ‘छठ मायर कतो जे मोहिमा, से कि आर मुखे बोला जाए’ सोशल मीडिया पर लाखों लोगों के दिलों में जगह बना चुका है।
यह गीत अब तक 10 लाख से अधिक बार यूट्यूब और फेसबुक पर देखा जा चुका है। ‘सन्मार्ग’ से बातचीत में अनिंदिता ने बताया, 'संगीत मेरे आत्मा में बसता है। मेरे पिता आलोक कांति आचार्य विष्णुपुर के प्रसिद्ध सितार वादक थे। मैंने कोलकाता में माया सेन से रवींद्र संगीत की शिक्षा ली।' टाटा स्टील सिजुआ ग्रुप में कार्यरत माइनिंग इंजीनियर बरुण कुमार बनर्जी से विवाह के बाद जब वे धनबाद आईं, तो हिंदी संगीत की बारीकियाँ उन्होंने बलकिशन सिंह ‘मुन्ना भैया’ से सीखीं।
लॉकडाउन के दौरान अपने घर के लाउंज में शूट किया गया उनका पहला बंगाली छठ गीत ही उन्हें चर्चा में ले आया। इसकी रचना संजय कुमार नायक ने की थी और संगीत बोकारो के मृत्युंजय भट्टाचार्य ने दिया था। यह गीत इंटरनेट पर खूब सराहा गया और इसी ने अनिंदिता के लिए छठ संगीत की दुनिया के द्वार खोल दिए।
अनिंदिता कहती हैं, 'मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि शारदा जी ने मेरे प्रयासों की सराहना की। छठ संगीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे बचाए रखना जरूरी है। मेरे लिए यह दुर्गा पूजा के आगमनी गीतों जैसा पवित्र अनुभव है।' असंख्य लोकप्रिय छठ गीतों के रचयिता अनिंदिता का सपना है, एक दिन भाषाई सीमाएँ मिट जाएँ और मेरे छठ गीत बिहार से लेकर बंगाल तक हर घाट पर गूंजें।