नयी दिल्ली : इस साल फरवरी से जुलाई के बीच देश भर में भीषण गर्मी (हीटस्ट्रोक) के कारण कम से कम 84 लोगों की मौत दर्ज की गयी। अधिकतर पीड़ित बुज़ुर्ग, बाहरी कामगार और दिहाड़ी मजदूर थे। इसके अलावा किसानों के खेतों में गिरने से लेकर बाहर खेलते समय बच्चों और किशोरों की मौत तक की घटनाएं भी शामिल थीं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक 17 मौतें हुईं, उसके बाद उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में 15-15 मौतें हुईं। गुजरात में 10 मौतें, असम में छह जबकि बिहार, पंजाब और राजस्थान में पांच-पांच मौतें दर्ज की गयीं। ओडिशा में तीन मौतें हुईं जबकि केरल, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में एक-एक मौत हुई।
सटीक संख्या विभिन्न वजहों से सामने नहीं आ पाती
लाभेतर संस्था ‘हीटवॉच’ की रिपोर्ट ‘स्ट्रक बाय हीट: ए न्यूज एनालिसिस ऑफ हीटस्ट्रोक डेथ्स इन इंडिया इन 2025’ में दावा किया गया है कि भारत में ‘हीटस्ट्रोक’ से होने वाली मौतों की सटीक संख्या विभिन्न वजहों से सामने नहीं आ पाती। इसके विपरीत सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने इस साल एक मार्च से 24 जून के बीच ‘हीटस्ट्रोक’ के 7,192 संदिग्ध मामलों और केवल 14 मौतों की सूचना दी।
‘कम रिपोर्टिंग’ के कारण संख्या काफी ज्यादा होने की संभावना
‘हीटवॉच’ ने कई भाषाओं में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों की समीक्षा पर आधारित विश्लेषण में पाया गया कि इस साल 26 फरवरी को नवी मुंबई में 13 वर्षीय छात्र की मौत इस मौसम के दौरान सबसे पहले होने वाली मौतों में से एक थी, जिससे यह पता चलता है कि भारत में किस तरह लू पहले आ रही है और लंबे समय तक चल रही है।आंध्र प्रदेश में हीटस्ट्रोक से बीमार होने के सबसे अधिक 700 मामले सामने आये, उसके बाद ओडिशा (348), राजस्थान (344) और उत्तर प्रदेश (325) का स्थान रहा हालांकि संस्था ने दावा किया कि ‘कम रिपोर्टिंग’ के कारण वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की संभावना है।
लू चेतावनी प्रणाली की आलोचना
रिपोर्ट में आईएमडी की लू चेतावनी प्रणाली की भी आलोचना की गयी है क्योंकि यह लगभग पूरी तरह से वायु के तापमान पर आधारित है जबकि ‘वेट बल्ब ग्लोब’ तापमान (डब्ल्यूबीजीटी) को इसमें शामिल नहीं किया गया है, जो संयुक्त रूप से गर्मी और आर्द्रता को मापता है।