

नयी दिल्ली : भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित 2021 के न्यायाधिकरण सुधार कानून के कई प्रावधानों को बुधवार को रद्द कर दिया और कहा कि इन्हें केंद्र द्वारा मामूली बदलावों के साथ फिर से लागू किया गया था। न्यायालय ने कार्यकाल पर पूर्व के न्यायिक निर्देशों को बहाल कर दिया, तथा यह स्पष्ट कर दिया कि आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) और सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) के सदस्य 62 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रहेंगे, जबकि उनके अध्यक्ष 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहेंगे।शीर्ष अदालत ने न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ का केंद्र सरकार पर आरोप : सरकार 2021 में अधिनियम लाई जिसमें फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण सहित कुछ अपीलीय न्यायाधिकरणों को समाप्त कर दिया गया और विभिन्न न्यायाधिकरणों के न्यायिक एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल से संबंधित विभिन्न शर्तों में संशोधन किया गया। भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन के पीठ ने कहा कि विवादित प्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और उन्हें वापस नहीं लाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि लंबित मामलों से निपटना केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी सरकार के अन्य अंगों को भी उठानी होगी। पीठ ने कहा कि संसद ने पहले से ही न्यायालय द्वारा रद्द किए गये प्रावधानों को पुनः लागू करके बाध्यकारी न्यायिक मिसालों की ‘विधायी रूप से अवहेलना’ का प्रयास किया।