मुंबई : पुणे के विशेष न्यायालय ने विनायक दामोदर सावरकर के पौत्र की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने उस पुस्तक के बारे में जानकारी मांगी थी जिसका जिक्र कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी के बारे में कथित तौर पर मानहानिकारक टिप्पणी करते हुए किया था।
सत्यकी सावरकर का दावा
सांसदों और विधायकों के विशेष न्यायालय के न्यायाधीश अमोल शिंदे ने कहा कि कांग्रेस नेता को पुस्तक पेश करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। मामले में शिकायती सत्यकी सावरकर ने मई में आवेदन दायर किया था। इसमें उन्होंने दावा किया कि राहुल जिस पुस्तक का जिक्र कर रहे थे, वैसी कोई पुस्तक है ही नहीं और यदि ऐसी कोई पुस्तक है तो गांधी से उसे पेश करने के लिए कहा जाये। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अभियुक्त को मुकदमा शुरू होने से पहले अपने बचाव से जुड़े साक्ष्यों के बारे में बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
जज ने फैसले में किया अनुच्छेद 20(3)का जिक्र
आदेश में कहा गया है कि अभियुक्त अपने बचाव से जुड़े साक्ष्य प्रस्तुत करने के दौरान कोई भी प्रासंगिक दस्तावेज पेश कर सकता है। अगर अभियुक्त को समय से पहले ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटीकृत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। न्यायाधीश ने कहा कि अनुच्छेद 20(3) के अनुसार किसी भी अभियुक्त व्यक्ति को अपने ही खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
सत्यकी सावरकर ने मांगा था ये सुबूत
सत्यकी सावरकर ने मार्च, 2023 में लंदन में दिये गये भाषण का हवाला देते हुए राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज करायी थी। शिकायत के अनुसार कांग्रेस सांसद ने भाषण के दौरान दावा किया था कि वी डी सावरकर ने एक किताब में लिखा था कि उन्होंने और उनके पांच-छह दोस्तों ने एक बार एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की थी, और उन्हें खुशी हुई थी। सत्यकी सावरकर ने मानहानि शिकायत में कहा कि ऐसी कोई घटना कभी नहीं हुई और न ही सावरकर ने ऐसा कुछ लिखा है।