'संसद ही सर्वोच्च, इससे ऊपर कोई नहीं...', जगदीप धनखड़ ने ‌दिया बड़ा बयान

निशिकांत दुबे विवाद के बीच जगदीप धनखड़ ने दिया बयान
'संसद ही सर्वोच्च, इससे ऊपर कोई नहीं...',  जगदीप धनखड़ ने ‌दिया बड़ा बयान
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नई दिल्ली - भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर की गई विवादास्पद टिप्पणी के बीच, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का एक महत्वपूर्ण बयान सामने आया है। उपराष्ट्रपति ने एक बार फिर संविधान द्वारा निर्धारित भारतीय सरकार के ढांचे के तहत न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया है।

सांसद ही संविधान के अंतिम मालिक

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संसद सर्वोच्च है और संविधान का अंतिम अधिकार सांसदों के पास है, इससे ऊपर कोई प्राधिकरण नहीं हो सकता। दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए, उन्होंने यह भी कहा कि एक प्रधानमंत्री, जिसने आपातकाल लगाया था, को 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था। इसीलिए, यह स्पष्ट है कि संविधान लोगों के लिए है और इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है।

सुप्रीम कोर्ट पर उठाए थे सवाल

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पहले भी सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए थे, खासकर तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित कुछ विधेयकों के राज्यपाल के पास लंबित रहने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर। धनखड़ ने कहा था कि अब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे रहा है, यह स्थिति और खराब क्या हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत ने यह निर्णय लिया कि अगर राष्ट्रपति निर्धारित समय सीमा के भीतर विधेयकों पर निर्णय नहीं लेते, तो वे स्वचालित रूप से लागू मान लिए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत संसद को चलाना चाहती है। उपराष्ट्रपति ने संविधान के आर्टिकल 142 का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट जनहित में ऐसा कोई भी निर्णय ले सकता है, जो पूरे देश पर लागू होता है।

संसद ही सुप्रीम

धनखड़ ने आगे कहा कि केवल निर्वाचित सांसद ही संविधान के अंतिम अधिकारी हैं। संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है। संसद सर्वोच्च है, और इस स्थिति में यह देश के हर नागरिक जितना महत्वपूर्ण है। हाल ही में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ कानून पर की गई टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा था कि अगर ऐसा ही है, तो संसद को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने यह सवाल उठाया कि जब सर्वोच्च शक्ति अदालत के पास है, तो फिर संसद की क्या आवश्यकता है।

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