

नई दिल्ली : विदेश मंत्रालय ने संसद की एक समिति से कहा है कि सिंधु जल संधि को स्थगित करने का भारत का फैसला पाकिस्तान द्वारा समझौते को दिशा देने वाले दोस्ती और सद्भावना जैसे सिद्धांतों के उल्लंघन का स्वाभाविक नतीजा है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय ने समिति से कहा है कि इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर के पिघलने सहित जमीनी हालात में आये बदलावों के कारण संधि की शर्तों पर फिर से बातचीत करना जरूरी हो गया है। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पहलगाम हमले में पाकिस्तान की भूमिका और आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख से अवगत कराने के लिए 33 देशों की राजधानियों का दौरा कर रहे संसदीय प्रतिनिधिमंडल भी सिंधु जल संधि को स्थगित करने के नयी दिल्ली के फैसले को जायज ठहराने के लिए यही तर्क देंगे। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि 1960 की सिंधु जल संधि की प्रस्तावना में स्पष्ट किया गया है कि यह संधि ‘सद्भावना और मित्रता की भावना’ पर आधारित है। पाकिस्तान ने इन सभी सिद्धांतों का प्रभावी रूप से उल्लंघन किया है।
सूत्रों के अनुसार विदेश मंत्रालय ने समिति से कहा कि पाकिस्तान संधि पर हस्ताक्षर के बाद जमीनी हालात में आये बदलावों के मद्देनजर दोनों देशों की सरकारों के बीच बातचीत के भारत के अनुरोध में लगातार अड़चल डाल रहा है। मंत्रालय ने कहा कि सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत किये जाने की जरूरत है ताकि इसे 21वीं सदी के लिए उपयुक्त बनाया जा सके क्योंकि यह 1950 और 1960 के दशक की इंजीनियरिंग तकनीकों पर आधारित है। मंत्रालय ने कहा कि अन्य प्रमुख बदलावों में जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर का पिघलना, नदियों के पानी की मात्रा में आया बदलाव और जनसांख्यिकी शामिल हैं।