‘निसार’ : भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग की उड़ान शुरू

दुनिया का सबसे महंगा मिशन, अनुमानित लागत 1.5 अरब डॉलर
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‘निसार’ पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा की ओर-
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श्रीहरिकोटा : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच साझेदारी के तहत बुधवार को जीएसएलवी रॉकेट से ‘निसार’ उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया गया। ‘निसार’ पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। बताया जाता है कि यह मिशन दुनिया का सबसे महंगा मिशन है, जिसकी अनुमानित लागत 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर है।

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जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी-

19 मिनट की उड़ान के बाद ध्रुवीय कक्षा में स्थापित

इसरो के जीएसएलवी एफ-16 ने लगभग 19 मिनट की उड़ान के बाद और लगभग 745 किलोमीटर की दूरी पर निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) उपग्रह को सूर्य तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) में स्थापित कर दिया। ‘निसार’ दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक दशक से अधिक समय तक जारी रहे तकनीकी सहयोग के आदान-प्रदान का परिणाम है। इसरो और नासा के बीच उपग्रह के लिए यह अपनी तरह की पहली साझेदारी है। इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन ने यहां से 102वें प्रक्षेपण के बारे में कहा कि जीएसएलवी एफ-16 ने निसार उपग्रह को सफलतापूर्वक इच्छित कक्षा में स्थापित कर दिया है। इसके अलावा, यह एसएसपीओ के लिए पहला जीएसएलवी मिशन था और अब तक, सभी जीएसएलवी मिशन ‘जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट’ (जीटीओ) में ही गये हैं।

12 दिन के अंतराल में पूरी पृथ्वी को स्कैन करेगा

नारायणन ने कहा कि एसएसपीओ मिशन होने के नाते इस मिशन को पूरी तरह सफल बनाने के लिए कई विश्लेषण और अध्ययन किये गये। अंतरिक्ष विभाग के सचिव नारायणन ने कहा कि निसार सभी मौसम में दिन और रात काम करने वाला उपग्रह है, जो 12 दिन के अंतराल में पूरी पृथ्वी को स्कैन करेगा। यह उपग्रह इसरो के एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार को नासा के एल-बैंडआर पेलोड और 12 मीटर के अनफ़र्लेबल एंटीना के साथ एकीकृत करता है, जो अपनी तरह का पहला दोहरी आवृत्ति वाला आर उपग्रह है। नासा की उप-सह-प्रशासक केसी स्वेल्स ने कहा कि यह एक शानदार दशक रहा, जिसमें तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक समझ, एक-दूसरे को जानने और महाद्वीपों, अलग -अलग समय क्षेत्रों के पार टीम बनाने की इस उपलब्धि को हासिल किया गया।

51.7 मीटर लंबा, 2393 किलोग्राम वजनी उपग्रह

जीएसएलवी-एस16 रॉकेट की लंबाई 51.7 मीटर है। जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट ने 27.30 घंटे की उलटी गिनती के बाद 2,393 किलोग्राम वजनी उपग्रह को लेकर उड़ान भरी। चेन्नै से लगभग 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण यान ने उड़ान भरी। रॉकेट से अलग होने के बाद विज्ञानी उपग्रह को संचालित करने का काम शुरू करेंगे, जिसमें उसे स्थापित करने और मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने में ‘कई दिन’ लगेंगे। इसरो के अनुसार एस-बैंड रडार प्रणाली, डेटा हैंडलिंग और हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण प्रणाली भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा विकसित की गयी हैं। एल-बैंड रडार प्रणाली, हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर, जीपीएस रिसीवर, 9 मीटर बूम होइस्टिंग और 12 मीटर रिफ्लेक्टर, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रदान किये गये हैं।

‘निसार’ का मिशन जीवनकाल पांच वर्ष

‘निसार’ का मिशन जीवनकाल पांच वर्ष है। इसरो ने कहा कि इसके अलावा इसरो उपग्रह की कमान और संचालन के लिए जिम्मेदार है। नासा कक्षा संचालन योजना और रडार संचालन योजना प्रदान करेगा। निसार मिशन को प्राप्त तस्वीरों को डाउनलोड करने के लिए इसरो और नासा दोनों के जमीनी केंद्र से सहायता मिलेगी, जिन्हें आवश्यक प्रसंस्करण के बाद उपयोगकर्ता तक प्रसारित किया जायेगा। इस दौरान एक ही प्लेटफॉर्म से एस-बैंड और एल-बैंडआर के माध्यम से प्राप्त डेटा से वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद मिलेगी। मिशन का उद्देश्य अमेरिका और भारत के वैज्ञानिक समुदायों के साझा हित के क्षेत्रों में भूमि और हिमनद की गतिविधियों, भूमि पारिस्थितिकी तंत्र और महासागरीय क्षेत्रों का अध्ययन करना है।

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