ईटानगर : जोरहाट (असम) स्थित नॉर्थ ईस्ट इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनईआईएसटी) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में पॉलीगोनेसी परिवार से संबंधित एक छोटे शाकाहारी पौधे की प्रजाति, कोएनिगिया अरुणाचललेंसिस की खोज की है। इसका नाम अरुणाचल प्रदेश के नाम पर रखा गया है। इस अध्ययन का नेतृत्व एनईआईएसटी के विज्ञानी डॉ. पंकज भराली, एनईआईएसटी के पीएचडी स्कॉलर बिपांकर हाजोंग और स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय, इवोल्यूशनरी बायोलॉजी सेंटर, सिस्टमैटिक बायोलॉजी के डॉ. मैग्नस लिडेन ने किया।
इस क्षेत्र में कोएनिगिया प्रजाति के पौधे बहुत आम नहीं
इस क्षेत्र में कोएनिगिया प्रजाति के पौधे बहुत आम नहीं हैं और ये पॉलीगोनेसी फेमिली के कम अध्ययन किये गये जटिल समूहों में से एक का प्रतिनिधित्व करते हैं। टीम के अनुसार इस समूह के भीतर अतिरिक्त टैक्सा हो सकते हैं जिन पर आगे अध्ययन की आवश्यकता है। हालांकि कोएनिगिया अरुणाचलेंसिस एक सीधी जड़ी बूटी है जिसमें प्रचुर मात्रा में राेयें होते हैं, लांसोलेट पत्तियां, बाहरी सतह पर लंबे बालों के साथ द्विदलीय गेरू और गहरे बैंगनी केंद्र के साथ कई कॉम्पैक्ट रूप से पैक्ड टर्मिनल सफेद फूल होते हैं। यह नयी प्रजाति जुलाई से अक्टूबर में फूलती है। यह कोएनिगिया नेपालेंसिस से बहुत मिलता-जुलता है, लेकिन इसमें कई विशिष्ट विशेषताएं हैं, जैसे कि बड़ी और लंबी पत्तियां, गेरू का अलग आकार और प्रकृति, बड़ा ब्रैक्ट, पुष्पक्रम में बड़ी संख्या में फूल, लंबा पेडीसेल, अधिक संख्या में पुंकेसर और पुंकेसर की अनुपस्थिति।
कई क्षेत्रों में इस प्रजाति का पता लगाया
यह नयी प्रजाति मुख्य रूप से तवांग जिले में अल्पाइन आवासों में वितरित की जाती है। अब तक विज्ञानियों ने तवांग के पोटाक, चूना, त्सेचु, बम ला, नागुलापास, से ला और बंगाजान क्षेत्रों में इस प्रजाति का पता लगाया है। यह समुद्र तल से 3,650-4,300 मीटर की ऊंचाई पर खुले अल्पाइन पथरीले ढलानों पर उगती है और अन्य शाकाहारी प्रजातियों जैसे कि लिगुलरिया एसपीपी, बिस्टोर्टा एसपी, पर्सिकेरिया एसपी, सेनेसियो एसपी, मेकोनोप्सिस एसपी, आदि से जुड़ी हुई है।
भारत-भूटान सीमा और भारत-तिब्बत सीमा पर भी मौजूद
टीम के अनुसार, कोएनिगिया अरुणाचलेंसिस अध्ययन क्षेत्रों में अत्यधिक प्रचुर मात्रा में है, प्रत्येक स्पॉट किये गये स्थान पर लगभग 500 से 700 व्यक्तियों की आबादी है। उन्होंने भारत-भूटान सीमा से लेकर भारत-तिब्बत सीमा तक इस प्रजाति की उपस्थिति दर्ज की है। आईयूसीएन (2022) दिशा-निर्देशों के अनुसार कर अरुणाचलेंसिस को प्रारंभिक रूप से ‘डेटा की कमी’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस खोज को नॉर्डिक सोसाइटी ओइकोस, स्वीडन के एक जर्नल ‘नॉर्डिक जर्नल ऑफ बॉटनी’ में प्रकाशित किया गया है।