

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री संग्रहालय की कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा का कहना है कि नेहरू स्मारक संग्रहालय को प्रधानमंत्री संग्रहालय में इसलिये परिवर्तित किया गया क्योंकि यह महसूस किया जा रहा था कि पूर्ववर्ती भवन ‘लोकतांत्रिक’ नहीं था। राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष मिश्रा ने कहा कि उनके लिए अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण से जुड़े प्रयासों का नेतृत्व करना उनके करियर का ‘सबसे विशेष कार्य’ था। मिश्रा का मानना है कि इस काम के लिए खुद ‘ईश्वर ने उन्हें नियुक्त’ किया था।
जनवरी में दूसरे कार्यकाल के लिए इस पद पर पुनः नियुक्त किए गए मिश्रा ने एक साक्षात्कार में बताया कि उन्हें यह सुनिश्चित करने का दायित्व दिया गया है कि संग्रहालय में प्रत्येक प्रधानमंत्री के साथ व्यवहार में ‘समानता का तत्व’ हो। कार्यकारी परिषद प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं तथा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वर्तमान में इसके उपाध्यक्ष हैं।
मिश्रा ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना था कि इस भवन को और अधिक लोकतांत्रिक बनाया जाना चाहिए। इसमें देश के सभी प्रधानमंत्रियों की उपलब्धियों को प्रदर्शित किया जाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी यह जानने के लिए उत्साहित हो कि सभी प्रधानमंत्री देश के प्रति ईमानदार थे और उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ कार्य किया तथा विभिन्न वर्गों, आय स्तरों, पृष्ठभूमियों से आने वाले लोग भी प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रख सकें।’
नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त निकाय है, जिसकी स्थापना 1966 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की स्मृति में की गई थी। इसका नाम 2023 में बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी कर दिया गया, जिससे राजनीतिक विवाद शुरू हो गया और कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया।
मोदी ने की थी दो मांगें
मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उनके प्रधान सचिव रहे मिश्रा ने कहा कि जब उन्हें संग्रहालय का काम सौंपा गया था तो प्रधानमंत्री ने उनसे दो मांगें की थीं। पूर्व नौकरशाह ने कहा, ‘वह चाहते थे कि हम प्रधानमंत्रियों के केवल सकारात्मक गुणों को ही प्रदर्शित करें ताकि आने वाले लोग नकारात्मक विचारों में न पड़ें। उन्हें केवल आकांक्षा रखनी चाहिए और महत्वाकांक्षी बनना चाहिए। और दूसरा, वह काफी हद तक समानता का तत्व चाहते थे। ऐसा कोई प्रदर्शन या आवंटन या कहानी या जो कुछ भी हो, नहीं होना चाहिए जिसमें हम प्रधानमंत्रियों के साथ समान स्तर पर व्यवहार न करें... जिसे वे समानता कहते हैं। इस प्रकार समानता का तत्व सुनिश्चित किया गया है। इस प्रकार यह संग्रहालय बनाया गया है।’
अकादमिक केंद्र के रूप में विकसित करेंगे
संग्रहालय की भविष्य की योजनाओं के बारे में मिश्रा ने कहा कि इसे एक अकादमिक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां लोग भारत पर शासन करने वाले प्रधानमंत्रियों की विशेषताओं और दर्शन तथा विचारों का अध्ययन कर सकेंगे, तथा विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के तरीके को देख सकेंगे, तथा विशेष रूप से यह देख सकेंगे कि किस प्रकार प्रत्येक प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया। उन्होंने कहा, यह भविष्य का कार्यक्रम है। इसमें कनिष्ठ और वरिष्ठ अध्येता होते हैं और उन्हें पारिश्रमिक के रूप में उचित राशि दी जाती है। वे दो साल तक यहां काम करते हैं और शोधपत्र लिखते हैं। इसलिए अब हम उन लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं जो चुने जाते हैं, वे विभिन्न प्रधानमंत्रियों के अलग-अलग समय के लिए अधिक प्रासंगिक विषयों का चयन करें।
15 प्रधानमंत्री, तो एक का नाम क्यों हो
यह पूछे जाने पर कि क्या परिवर्तन के दौरान शिक्षाविदों या अभिलेखों में रुचि रखने वाले समुदाय की ओर से कोई प्रतिरोध हुआ, मिश्रा ने कहा, ‘बिल्कुल नहीं’। मिश्रा ने कहा, ‘कोई विवाद नहीं हुआ, नेहरू स्मारक का नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय कर दिया गया, तो थोड़ा बहुत फर्क पड़ा, लेकिन सबको समझ में आ गया कि अगर यहां 15 प्रधानमंत्री हैं, तो इसे एक प्रधानमंत्री के नाम से नहीं पुकारा जा सकता। इसे सभी प्रधानमंत्रियों के लिए बदलना होगा। इसलिए यह बहुत तार्किक भी था और इसे अच्छी प्रतिक्रिया भी मिली है। ऐसी उम्मीदें हैं कि अब इसे बहुत उच्च केंद्र बनना चाहिए या इसे भारत में लोकतंत्र और प्रधानमंत्रियों के योगदान के विषय पर शोध का एक केंद्र बनना चाहिए।’