छठ पर घर नहीं लौट पाये कई आँखों के तारे

हजारों लोगों ने घर से दूर मनाया आस्था का पर्व
File Photo
File Photo
Published on

कोलकाता: छठ केवल एक पूजा नहीं, अटूट संबंधों का प्रतीक है - मिट्टी, नदी, सूरज और मां के आंचल से जुड़ने की तड़प का पर्व। हर साल जब सूर्यास्त की बेला में घाटों पर दीप जलते हैं, तब किसी स्टेशन की फर्श पर बैठा प्रवासी भी उस उजाले में अपना घर खोजता है।

बिहारियों के लिए छठ घर लौटने का सबसे पवित्र अवसर है। देश के कोने-कोने में काम कर रहे लोग अपने परिवार से मिलने के लिए इस वक्त बेसब्री से घर लौटते हैं लेकिन हर कोई भाग्यशाली नहीं। इस बार भी कई प्रवासी मजदूर अपने पैतृक घर नहीं लौट पाये।

कोलकाता में रह रहे टैक्सी ड्राइवर देवेन्द्र प्रसाद पिछले 15 सालों से शहर में हैं। इस बार वे अपने घर सिवान नहीं लौट पाये। उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे घर पर उनका इंतजार करते रहे। वे दुख भरे स्वर में कहते हैं, 'सरकार ने छठ पर स्पेशल ट्रेन का वादा किया था, पर वह वादा हवा हो गया। टिकट वेटिंग में है। अब दूर से ही छठी मइया को प्रणाम करूंगा।' उसकी आवाज में गूंजती है हर उस बेटे की तड़प, जो अपनी मां की थाली में ठेकुआ रखना चाहता था, पर लौट नहीं सका।

लेक गार्डन्स के किराना दुकानदार अनिल कुमार सिंह, जिनकी बीमार मां समस्तीपुर में हैं, भी घर नहीं जा सके। वे कहते हैं, 'दुकान बंद करूं तो घर कैसे चलेगा? मां की दवा तक नहीं खरीद पाऊंगा।' मध्यग्राम की बिंदु साव दूसरों के घरों में आया का काम करती हैं, अपनी ही छत से दूर। कहती हैं, 'अगर मैं घर (पटना) चली जाऊं तो जिनकी देखभाल करती हूं, उनका क्या होगा? मेरी प्रार्थना यहीं से पहुंचेगी।'

गया के बुजुर्ग बच्चू यादव, फुचका बेचते हुए मुस्कराने की कोशिश करते हैं। अब उम्र हो गई, बीमार भी रहे, पूजा में ज्यादा कमाई नहीं हुई। घर जाना अब सपना है। इन सबकी कहानियां सिर्फ आर्थिक संघर्ष की नहीं, बल्कि उस भावनात्मक बंधन की भी हैं, जो हर इंसान को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है। छठ की आरती जब गूंजती है, तो हर प्रवासी के दिल में वही प्रार्थना उमड़ती है — 'छठी मइया, अगले साल जरूर लौटेंगे। सूरज की पहली किरण के संग अपने घर की देहरी पर।'

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in