सन्मार्ग संवाददाता
श्री विजयपुरम : महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल का दौरा किया और वहां विनायक दामोदर सावरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। सावरकर ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान इसी जेल में अपनी सजा काटी थी। शेलार ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि मैं अंडमान और निकोबार में सेलुलर जेल की उस अंधेरी कोठरी में गया, जहां अत्याचारी ब्रिटिश शासन ने स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर को कारावास की सजा काटने के लिए कैद किया था। वहां मैं सावरकर की प्रतिमा के सामने नतमस्तक हुआ। शेलार ने सेलुलर जेल में सावरकर को दी गयी यातनाओं को याद करते हुए कहा कि जिन दीवारों पर सावरकर ने अपनी अमर कविताएं लिखीं, उन्हें छूकर मैं रोमांच से भर गया। वह जेल, सावरकर द्वारा पहनी गई रस्सी और उन वस्तुओं को देखकर, कोई भी कल्पना कर सकता है कि भारत माता के इस महान सपूत ने कितनी घातक यातनाएं झेली होंगी, लेकिन साथ ही "अनादि मि अनंत मि" अवध्या मि भला... इन पंक्तियों का अर्थ भी सामने आने लगता है। शेलार ने बाद में केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव चंद्र भूषण कुमार से मुलाकात की और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में वीर सावरकर का स्मारक बनाने के लिए उनसे सहयोग का अनुरोध किया। उन्होंने मुख्य सचिव को यह भी बताया कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री को भी इसी तरह का अनुरोध करते हुए पत्र लिखा है। शेलार ने स्मारक बनाने के लिए स्थानीय प्रशासन से समर्थन और सहयोग का अनुरोध किया। सेलुलर जेल, जिसे कालापानी के नाम से भी जाना जाता है, वह जगह थी जहां कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी सजा काटी थी, जिनमें नानी गोपाल मुखर्जी, नंद कुमार, पुलिन बिहारी दास, भाई परमानंद, पृथ्वी सिंह आजाद, त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती उर्फ महाराज, अनंत सिंह, पंडित राम राखा और कई अन्य शामिल थे। मालूम हो कि 30 अप्रैल 1908 के बम कांड के बाद अलीपुर बम कांड के राजनीतिक कैदी, कालापानी भेजे जाने वाले लोगों के पहले समूह में थे। विभिन्न षड्यंत्र और बम विस्फोट मामलों में दोषी पाये गये लोगों को भी द्वीप पर सेलुलर जेल भेजा गया था। सावरकर को स्वयं द्वितीय नासिक षड्यंत्र मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें 50 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। उन्हें 1911 में जहाज एसएस महाराजा द्वारा अंडमान लाया गया था। सावरकर की पुस्तक माझी जनेप (मराठी में) और इसके अंग्रेजी अनुवाद वीएन नाइक द्वारा द स्टोरी ऑफ माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ (1950) और हिंदी अनुवाद आजन्म कारावास् (1966) में कैदियों के उनके जीवन, पीड़ादायक दिनचर्या और यातना के विभिन्न तरीकों का वर्णन किया गया है।