जानिए कहानी भारत से 15,000 Km दूर बसे 'Mini Bihar' की

जानिए सूरीनाम की कहानी
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कोलकाता - भारत में कुल 28 राज्य हैं। इन 28 राज्य में अनेक अलग-अलग धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भारत एक ऐसा देश है जहां हर 300 Km के बाद भाषा, पहने जाने वाले कपड़े, खाए जाने वाला खाना बदलते रहता है। यह देश विविधता से भड़ा हुआ है।

बंगाल में जहां ज्यादा तर लोग मांसाहारी है वहीं इसके पास स्थित राज्य बिहार के लोग लिट्टी चोखा ज्यादा पसंद करते हैं। एक तरफ जहां महाराष्ट्र में मराठी बोली जाती है वहीं बिहार में भोजपुरी बोली जाती है। वर्तमान में जहां हमारे देश में एक तरफ भाषाओं को लेकर लड़ाई चल रही है वहीं दूसरी तरफ आज हम आपको एक बेहतरीन उदाहरण देने जा रहे हैं।

कहानी दक्षिण अमेरिकी देश सूरीनाम की

दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में कुल 12 देश हैं। इन 12 देशों में से एक का नाम है सूरीनाम ( Suriname)। इस देश की राजधानी का नाम पारामरिबो है। इस देश की कुल आबादी 6.29 लाख है। इस देश की खास बात यह है की इसकी आबादी के कुल 30% लोग भोजपुरी बोलते हैं। इसका मतलब देश की 6.29 लाख आबादी में से लगभग 1.9 लाख लोग इस देश से 15,000 Km दूर स्थित देश भारत के एक राज्य बिहार में बोली जाने वाली भाषा बोलते हैैं। मगर ऐसा कैसे ?

क्या है इसके पिछे की वजह ?

दरअसल बात है 1870 की जब अंग्रेज भारत पर शासन किया करते थे। उस वक्त अंग्रेजो को सूरीनाम में ईंख की खेती करवानी थी। आपको बता दें कि ईंख की खेती करना काफी कठिन काम है। अंग्रेजों को इसके लिए मजदूरों की जरूरत थी। इस काम के लिए अंग्रजो ने भारत के लोगों को चुना। अंग्रेजों ने भारत के लोगों को वेतन का लालच दिया और कहा कि उन्हें पांच साल के लिए दूसरे देश में जाकर ईंख की खेती करनी होगी।

इसके बदले में उन्हें अच्छा वेतन दिया जाएगा और पांच साल बाद वह भारत वापस आ सकेंगे। इस बात पर राजी होकर भारत के कई राज्य जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिल नाडु और उड़ीसा से कुल 35,000 लोगों को सूरीनाम ले जाया गया। इन 35,000 मजदूरों को पानी के रास्ते सूरीनाम जाने में तीन महीने का समय लग गया। इन लोगों को वहां 'गिरमिटिया मजदूर' कहा जाता था।

यह लोग पांच साल तक सूरीनाम में अंग्रेज सरकार की देख रेख में ईंख की खेती करते रहे। पांच साल के बाद जब इन लोगों ने अंग्रेज सरकार से वापस अपने देश जाने की मांग की तो इनकी मांग को खारिज कर दिया गया। इन सभी भारतीय लोगों को और कई सालों तक वहीं काम करना पड़ा।

कई सालों बाद जाकर अंग्रेज सरकार ने इन लोगों की मांग को देखते हुए कुछ लोगों को भारत वापस भेजने का प्रबंध किया। इन 35,000 लोगों में लगभग 12,000 ही वापस भारत आ पाए। बाकी लोगों को दूसरी बार भेजने का वादा करते हुए अंग्रजों ने कभी उन्हें वापस भेजा ही नहीं। जो लोग वहीं रह गए उनमे ज्यादातर बिहार से थे। इसी वजह से आज भी इस देश में इतने लोग भोजपुरी बोलते हैं।

देश के राष्ट्रपति भी भारतीय मूल के नागरिक हैं

इस देश के राष्ट्रपति का नाम चंद्रिका प्रसाद है जो खुद भी एक भारतीय मूल के नागरिक हैं। देश में आज भी भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है क्योंकि यहां के लोगों ने हार कर पूरी तरह से अपनी संस्कृति नहीं बदल ली बल्कि अपनी संस्कृति से जुड़े रहे।

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