भारत में बने कावेरी इंजन की रूस में होगी फ्लाइंग टेस्टिंग, स्वदेशी स्टेल्थ ड्रोन में होगा इस्तेमाल

2035 के बाद तेजस मार्क1ए में अमेरिका के जीई-404 इंजन की जगह कावेरी 2.0 को लगाने का प्लान
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नयी दिल्ली : भारत में बने ‘कावेरी’ जेट इंजन की वास्तविक स्थिति में क्षमता के मूल्यांकन के लिए उड़ान परीक्षण रूस में होगा। बताया जाता है कि इंजन पर करीब 25 घंटे का परीक्षण होना बाकी है। स्थान (स्लॉट) मिलने पर परीक्षण किया जायेगा।

डीआरडीओ रूस में करेगा ‘कावेरी’ जेट इंजन का उड़ान परीक्षण

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) कावेरी जेट इंजन का उड़ान परीक्षण रूस में करने जा रहा है। इसके कैपेसिटी शोकेस के लिए इसे एक हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) में लगाया जायेगा। शुरुआत में ‘कावेरी’ इंजन को ‘तेजस’ जैसे स्वदेशी एलसीए में लगाने की योजना था लेकिन कार्यक्रम में देरी के चलते ‘तेजस’ में अमेरिकी इंजन जीई-404 लगाया गया।

स्टेल्थ ड्रोन की क्षमता बढ़ाने के लिए फिर से तैयार किया जा रहा

इस इंजन को अब भारत में बने लंबी दूरी के घातक अनमैंड एअर ह्वीकल (यूएवी) यानी स्टेल्थ ड्रोन की क्षमता बढ़ाने के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है। वर्ष 2035 के बाद तेजस मार्क1ए में अमेरिका के जीई-404 इंजन की जगह कावेरी 2.0 को लगाने का प्लान है। यह 90 केएन थ्रस्ट वैरिएंट होगा। जीटीआरई ने इसके लिए फंड मांगा है।

एएमसीए के लिए शक्तिशाली इंजन बनाने की तैयारी

कावेरी 80 किलो न्यूटन (केएन) थ्रस्ट (पावर) वाला एक लो बाईपास, ट्विन स्पूल टर्बोफैन इंजन है। बेहतर मैनुअल कंट्रोल के लिए इसमें ट्विन-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (एफएडीईसी) सिस्टम लगाया गया है। हाई स्पीड और उच्च तापमान के दौरान इंजन का पावर लॉस कम करने के लिए इसे फ्लैट-रेटेड डिजाइन किया गया है। इस तकनीक में इंजन की थ्रस्ट लिमिट उसके मैक्सिमम पॉइंट से कम पर फिक्स कर दी जाती है। डीआरडीओ 5वीं पीढ़ी के विकसित मध्यम लड़ाकू विमान (एएमसीए) के मार्क2 वर्जन सहित भविष्य के विमानों के लिए ज्यादा शक्तिशाली इंजन बनाने के लिए विदेशी फर्म के साथ काम कर रहा है। भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम में एलसीए मार्क 1ए, एलसीए मार्क 2 और एएमसीए विकसित करना शामिल है।

लड़ाकू जेट के इंजन बनाने की तकनीक सिर्फ 4 देशों के पास

दुनिया में पहली बार साल 1930 में जेट इंजन का पेटेंट कराया गया था। आज 95 साल बाद भी दुनिया के सिर्फ चार देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ही लड़ाकू विमान के इंजन बना पाते हैं। चीन ने कुछ जेट इंजन जरूर बनाये हैं लेकिन वह भी नकल यानी रिवर्स इंजीनियरिंग करके। आज भी चीन अपने लड़ाकू विमानों के लिए इंजन रूस से लेता है। लड़ाकू विमान का इंजन बनाना कितना पेचीदा है, इसे हम सबसे ज्यादा उड़ान भरने वाले बोइंग 747 जैसे नागरिक विमान के इंजन से समझ सकते हैं। इसके एक इंजन में 40 हजार कलपुर्जे होते हैं। यह 1400 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। वहीं लोहा पिघलने के लिए 1538 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। ऐसे में इन पुर्जों को काम का बनाये रखना बड़ी चुनौती होती है।

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