सिम्भावली शुगर मिल 97 करोड़ के घोटाले में भी आया था जस्टिस वर्मा का नाम

नकदी विवाद: दिल्ली हाईकोर्ट के सीजे ने प्रधान न्यायाधीश को सौंपी रिपोर्ट
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जस्टिस यशवंत वर्मा
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नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से हाल ही बड़ी मात्रा में नकदी ‘बरामद’ होने के मामले के बीच उनके एक पुराने ‘आर्थिक घोटाले’ की परतें फिर से खुलने लगी हैं। यह घोटाला उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल धोखाधड़ी मामले से जुड़ा हुआ है, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा कंपनी के तत्कालीन गैर कार्यकारी निदेशक (नॉन-एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर) के तौर पर एक अभियुक्त के रूप में नामित हैं। इस बीच दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय ने न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास से ‘नकदी मिलने’ के मामले में भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को रिपोर्ट ‘सौंप’ दी है।

किसानों के लिए जारी ऋण के दुरुपयोग का आरोप

इस बीच न्यायमूर्ति वर्मा से जुड़ा एक और मामला चचा में आया है। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 2018 में सिम्भावली शुगर मिल्स लिमिटेड के खिलाफ एक जांच शुरू की थी, जिसमें कंपनी पर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से लिये गये करोड़ों रुपये के ऋण को गलत तरीके से इस्तेमाल करने का आरोप था। बैंक ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने किसानों के लिए जारी किये गये 97.85 करोड़ रुपये के ऋण का दुरुपयोग किया और इन धनराशियों को अन्य उद्देश्यों के लिए मोड़ दिया।

सीबीआई ने 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी

मई, 2015 तक इस घोटाले को ‘संभावित धोखाधड़ी’ मानते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को रिपोर्ट कर दिया गया था। सीबीआई ने इस मामले में 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें यशवंत वर्मा 10वें अभियुक्त के रूप में सूचीबद्ध थे। उस समय वे कंपनी के नॉन-एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में कार्यरत थे। हालांकि जांच धीमी होती चली गयी और किसी बड़े कदम की घोषणा नहीं की गयी।

सुप्रीम कोर्ट ने रोकी थी सीबीआई की जांच!

एक अदालत ने फरवरी, 2024 में सीबीआई को बंद पड़ी इस जांच को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया था लेकिन इसके कुछ ही समय बाद उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश को पलट दिया, जिससे सीबीआई की शुरुआती जांच को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया। इस फैसले के बाद सिम्भावली शुगर मिल घोटाले से जुड़े वित्तीय अनियमितताओं की किसी भी जांच की संभावना खत्म हो गयी।

अब तक क्या-क्या हुआ?

न्यायमूर्ति उपाध्याय ने घटना के संबंध में साक्ष्य और जानकारी एकत्र करने के लिए आंतरिक जांच प्रक्रिया शुरू की थी और शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम रिपोर्ट की पड़ताल करेगा और फिर कोई कार्रवाई कर सकता है। गौरतलब है कि 14 मार्च को होली की रात करीब 11.35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने के बाद दमकल कर्मी आग बुझाने पहुंचे थे। इस दौरान वहां बड़ी मात्रा में नकदी ‘मिली’ थी। शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच शुरू की है और उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भी है। बयान में यह भी कहा गया कि न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर हुई घटना के संबंध में गलत सूचना और अफवाहें फैल रही हैं।

‘सच्चाई जानने में हो रही है मुश्किल’

इस मामले में पूरे देश में नेताओं से लेकर बेहद वरिष्ठ वकीलों तक बयान दे रहे हैं। बार कौंसिल के प्रमुख कपिल सिब्बल ने इस मामले की सख्त जांच करने की बात कही थी और अब पूर्व अटॉर्नी जनरल के साथ-साथ वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने भी इस मामले को लेकर सवाल खड़े किये हैं। रोहतगी ने इस विवाद पर पारदर्शिता की मांग करते हुए घटना की जानकारी में देरी और ब्योरे की कमी को लेकर चिंता जाहिर की।

सीजेआई ने देर से प्रतिक्रिया क्यों दी ?

रोहतगी ने कहा कि यह पता चलना चाहिए कि न्यायमूर्ति वर्मा के घर पर आग लगने की सूचना किसने दी? दमकल विभाग कब पहुंचा? विभाग के प्रमुख ने पहले क्यों कहा कि कोई पैसा नहीं मिला? कितने कमरों की जांच हुई? पैसा घर के अंदर मिला या सर्वेंट क्वार्टर में? उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि जब घटना 14 मार्च को हुई थी, तो सीजेआई को इसकी जानकारी 20 मार्च को क्यों दी गयी। अगर उन्हें पहले बताया गया था तो उन्होंने देर से प्रतिक्रिया क्यों दी।

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