इलाहाबाद हाईकोर्ट की ‘रेप’ पर टिप्पणी ‘असंवेदनशील और अमानवीय’: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस मिश्रा की टिप्पणी पर लगी रोक
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय
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नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के बलात्कार संबंधी हालिया नजरिये पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उनकी इस टिप्पणी पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि ‘महज स्तन पकड़ना और पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता’।

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जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा

सुप्रीम कोर्ट ने लिया था स्वत: संज्ञान

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के पीठ ने कहा कि उसे यह कहते हुए तकलीफ हो रही है कि उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश में की गयीं कुछ टिप्पणियां पूरी तरह से ‘असंवेदनशील’ तथा ‘अमानवीय दृष्टिकोण वाली’ हैं। पीठ ने इसे ‘बेहद गंभीर मामला’ करार देते हुए कहा कि सामान्य परिस्थितियों में हम इस स्तर पर स्थगन देने में सुस्त हैं लेकिन चूंकि पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गयी टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से पूरी तरह अलग हैं और पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं, इसलिए हम उक्त टिप्पणियों पर स्थगन देने के लिए इच्छुक हैं।

‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया’ संगठन की भूमिका

गौरतलब है कि ‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया’ संगठन उच्च न्यायालय द्वारा की गयी विवादास्पद टिप्पणियों को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में लाया जिसके बाद शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया। उच्च न्यायालय की विवादास्पद टिप्पणियों पर रोक लगाने का मतलब यह है किसी तरह की विधिक प्रक्रिया में इनका आगे इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।

केंद्र, यूपी सरकार को नोटिस जारी

उच्च न्यायालय का आदेश दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर आया था। इन अभियुक्तों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी। न्यायालय की कार्यवाही शुरू होने पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह एक ऐसा फैसला है जिस पर मैं बहुत गंभीर आपत्ति जताता हूं। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी भी इस मामले में पेश हुए। पीठ ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है। इसमें न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता झलकती है। पीठ ने साथ ही कहा कि हमें न्यायाधीश के खिलाफ ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है। पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गयी कार्यवाही में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी की।

अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद

पीठ ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वे अपना आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को बतायें, जिसके बाद इसे ‘तुरंत’ वहां के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जायेगा। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से मामले की जांच करने और उचित कदम उठाने का आग्रह किया गया। पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद की जायेगी। सुनवाई के दौरान मामले में उपस्थित एक वकील ने कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है। पीठ ने कहा कि याचिका पर स्वतः संज्ञान वाले मामले की सुनवाई के साथ की जायेगी।

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