जजों के कामकाज को लेकर उठे विवाद ने तूल पकड़ा जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद ट्रांसफर

इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘विवादास्पद’ फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग, संसद में भी उठा मामला
justice_yashwant_varma
जस्टिस यशवंत वर्मा-
Published on
justice_ram_manohar_narayan_mishra
जस्टिस राम मनोहरा नारायण मिश्रा

नयी दिल्ली : देश के दो उच्च न्यायालयों में कार्यरत दो जजों के कामकाज को लेकर उठे विवाद ने शुक्रवार को उस वक्त और तूल पकड़ लिया जब दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से बड़ी नकद राशि ‘बरामद’ होने की घटना के बाद उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी और केंद्र के एक मंत्री ने शीर्ष न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया जिसमें कहा गया था कि किसी लड़की के निजी अंग को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं है बल्कि यह यौन उत्पीड़न के कम गंभीर आरोप के अंतर्गत आता है।

गूंज संसद में भी सुनायी दी

इन दोनों मामलों की गूंज संसद में भी सुनायी दी। राज्यसभा में न्यायाधीश के आवास पर भारी नकदी ‘मिलने’ भ्रष्टाचार बहुत गंभीर मुद्दा करार देते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने और महाभियोग चलाने तक की मांग की गयी।

नकदी मिलना और ट्रांसफर दो अलग मामले : कोर्ट

न्यायाधीश यशवंत वर्मा के मामले में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अगुवाई वाले शीर्ष न्यायालय के पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने ‘करोड़ों रुपये की नकदी बरामद’ होने की घटना के बाद तत्काल एक बैठक की और न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया। न्यायमूर्ति वर्मा का प्रस्तावित स्थानांतरण केंद्र द्वारा कॉलेजियम की सिफारिश को स्वीकार करने के बाद प्रभावी हो सकता है।

सिफारिश को आधिकारिक रूप से आगे भेजा जाना अभी बाकी

इस सिफारिश को आधिकारिक रूप से आगे भेजा जाना अभी बाकी है। यदि आवश्यक हुआ, तो कॉलेजियम आगे की कार्रवाई भी कर सकता है। इसके कुछ घंटे बाद हालांकि शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नकदी मिलने और उनके तबादले का आपस में कोई संबंध नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वर्मा के घर आग और नकदी पर गलत सूचनाएं और अफवाहें फैलायी जा रही हैं। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई को प्राइमरी रिपोर्ट सौंपेंगे। इसकी जांच के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार किया जायेगा।

जस्टिस वर्मा अदालत नहीं आये

इस बीच दिल्ली उच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश वर्मा ने शुक्रवार को अदालत में सुनवाई नहीं की। यह जानकारी उनके ‘कोर्ट मास्टर’ ने वकीलों को दी। वकीलों ने इस घटना पर दुख एवं आश्चर्य व्यक्त किया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय ने भी कहा कि हर कोई ऐसा ही महसूस कर रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला के पीठ से भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जाने का अनुरोध किया।

सख्त कार्रवाई चाहते थे कॉलेजियम के कुछ सदस्य!

बताया जाता है कि कुछ सरकारी अधिकारियों ने शीर्ष न्यायालय के कॉलेजियम को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास में लगी भीषण आग के बाद वहां से बड़ी मात्रा में नकद राशि बरामद होने की जानकारी दी जिसके बाद कॉलेजियम ने कार्रवाई की। सूत्रों के अनुसार कॉलेजियम के कुछ वरिष्ठ सदस्य न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले के अलावा उनके खिलाफ और सख्त कार्रवाई चाहते थे। उनका कहना है कि कॉलेजियम को न्यायमूर्ति वर्मा का इस्तीफा मांगना चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार न्यायमूर्ति वर्मा ने 11 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने से पहले एक फरवरी, 2016 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी।

राज्यसभा में उठा मुद्दा

न्यायमूर्ति वर्मा का मामला शुक्रवार को राज्यसभा में उठाया गया। सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि ोह इस मुद्दे पर एक व्यवस्थित चर्चा बहस कराने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस के जयराम रमेश ने सुबह के सत्र में यह मुद्दा उठाते हुए न्यायिक जवाबदेही पर सभापति से जवाब मांगा । रमेश ने यह भी बताया कि इससे पहले 50 सांसदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा की गयी कुछ टिप्पणियों के संबंध में सभापति को एक नोटिस सौंपी थी। सभापति ने कहा कि वे सदन के नेता और विपक्ष के नेता से संपर्क करेंगे और सत्र के दौरान व्यवस्थित चर्चा के लिए तंत्र तलाशेंगे। महाभियोग मामले पर सभापति ने कहा कि उन्हें राज्यसभा के 55 सदस्यों से प्रतिवेदन मिला है।

‘इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में दखल दे सुप्रीम कोर्ट’

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने शुक्रवार को कहा कि शीर्ष न्यायालय को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की उस व्यवस्था में हस्तक्षेप करना चाहिए, जिसमें कहा गया था कि किसी लड़की के निजी अंग को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं है बल्कि यह यौन उत्पीड़न के कम गंभीर आरोप के अंतर्गत आता है। अन्नपूर्णा देवी ने संसद परिसर के बाहर संवाददाताओं से कहा कि वे फैसले से ‘पूरी तरह असहमत’ हैं और उन्होंने उच्चतम न्यायालय से मामले का संज्ञान लेने का आह्वान किया। उन्होंने फैसले के व्यापक निहितार्थों पर भी चिंता व्यक्त की और आगाह किया कि इससे समाज में गलत संदेश जा सकता है। यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज में 11 वर्षीय लड़की से जुड़ा है, जिस पर 2021 में दो लोगों - पवन और आकाश ने हमला किया था।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in