लखनऊ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन राव भागवत ने रविवार को कहा कि नैतिक भ्रम, संघर्ष और शांति की कमी से जूझ रहे विश्व के लिए भगवद् गीता कालातीत मार्गदर्शन प्रदान करती है। उन्होंने कहा हमारा देश पूरी दुनिया का विश्वगुरु था। अनेक राजाओं के राज्यों से मंडित था। दुनिया के लिए एक बड़ा सहारा था। कभी चक्रवर्ती सम्राट भी हुआ करते थे। 1000 साल तक इसे मुस्लिम और अंग्रेज आक्रांताओं के पैरों तले रौंदा गया, जिस कारण से हमें गुलामी में रहना पड़ा। पवित्र पावन धार्मिक स्थलों को नष्ट किया गया। यह तब भी भारतवर्ष था। वैभव के दिन अब नहीं रहे तो वे आक्रमण के दिन भी अब चले गए। अब राम मंदिर पर झंडा फहराने वाले हैं। हमें धर्म रक्षा के लिए लड़ना है।
‘दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव’ में हुए शामिल
यहां जनेश्वर मिश्र पार्क में रविवार को आयोजित ‘दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव’ को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य केवल औपचारिकता मात्र नहीं है, बल्कि लोगों को गीता के अनुसार जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है। उन्होंने कहा कि हम यहां इसलिए हैं क्योंकि गीता को केवल सुनाना नहीं, बल्कि उसे जीना है। इसके 700 श्लोकों को पढ़ना, मनन करना और अपने दैनिक जीवन में उतारना जरूरी है। जिस प्रकार कृष्ण ने अर्जुन का भ्रम दूर किया, उसी प्रकार गीता आज मानवता को उसकी चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा कि कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- ‘भागो मत। दृढ़ रहो, समस्या का सामना करो और अहंकार या भय के बिना कार्य करो’।
युद्ध का मैदान भी हमारे लिए ‘धर्मक्षेत्र’ : योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को कहा कि युद्ध का मैदान भी हमारे लिए ‘धर्मक्षेत्र’ है और जहां धर्म व कर्तव्य होगा, वहीं जय होनी है। आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन राव भागवत की उपस्थिति में रविवार को यहां जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित ‘दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव’ को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘पूरे भारत को हमने धर्मक्षेत्र माना, इसलिए युद्ध का मैदान भी हमारे लिए धर्मक्षेत्र ही है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किसी को गुरुर नहीं पालना चाहिए कि अधर्म के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त हो जाएगी। यह भारत के सनातन धर्म की परंपरा है कि प्रकृति का अटूट नियम है, सदैव से यही होता आया है। इसलिए हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए। योगी ने कहा कि भारत ने कभी नहीं कहा कि हमारी ही उपासना विधि सबसे अधिक श्रेष्ठ है। हमने सब कुछ होते हुए भी अपनी श्रेष्ठता का डंका नहीं पीटा। सनातन धर्म की यही परंपरा रही है। हमारे सामने जो भी आया, उसकी मदद की। कोई परेशानी में रहा तो उसे छांव दी। यही हमारे धर्म की श्रेष्ठता है। श्रीमद् भगवद्गीता भारत की प्रेरणा है। भारत में धर्म जीने की व्यवस्था है।