वायु प्रदूषण के मामले में डब्ल्यूएचओ से मेल नहीं खाता भारत का स्टैंडर्ड : विशेषज्ञ

वायु प्रदूषण के मामले में डब्ल्यूएचओ से मेल नहीं खाता भारत का स्टैंडर्ड : विशेषज्ञ
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कोलकाता : वायु प्रदूषण के मामले में डब्ल्यूएचओ से भारत का स्टैंडर्ड मेल नहीं खाता। यह कहना है लंग केयर फाउंडेशन (इंडिया) के फाउंडर ट्रस्टी प्रो. (डॉ.) अरविंद कुमार का। यहाँ उल्लेखनीय है कि वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर, विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर कोलकाता के कई एक्सपर्ट्स एकजुट हुए और इस मामले में तुरंत कदम उठाने की अपील की। इसमें बंगाल क्लीन एयर नेटवर्क, लंग केयर फाउंडेशन ने सीएमआरआई के सहयोग से सीएमआरआई ऑडिटोरियम में एक सम्मेलन आयोजित किया। डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस दौरान बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता ज़ाहिर की और इसे लेकर जागरूकता फैलाने पर ज़ोर दिया। पैनलिस्ट में बोस इंस्टिट्यूट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अभिजीत चटर्जी, सीएमआरआई हॉस्पिटल के कंसलटेंट पल्मोनोलोजिस्ट डॉ. अरूप हल्दर, एनवायरनमेंट कंसलटेंट ऑफ़ कैंटोनमेंट बोर्ड की डॉ. स्वाति(नंदी) चक्रवर्ती और आरजी कर मेडिकल कॉलेज की डॉ. इप्शिता प्रसाद मौजूद थीं।

पीएम 2.5 डालता है यह असर

हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (जिन्हें पीएम 2.5 के रूप में मापा जाता है) इतने छोटे होते हैं कि वे श्वसन पथ में गहराई तक जाकर फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं। इससे आंख, नाक, गले और फेफड़ों में जलन, खांसी, छींक, नाक बहना और सांस लेने में तकलीफ जैसे अल्पकालिक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं।

22 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 का स्तर एक सिगरेट के बराबर

डॉ. अरविंद कुमार ने कहा, 'हमारे मानक को डब्ल्यूएचओ के मानक की तुलना में उदार बनाना व्यर्थ है। यह प्रदूषण को स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार करने में हमारी विफलता से उत्पन्न होता है। देश के स्वच्छ वायु कार्यक्रम में कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है। इस प्रकार, मानक निर्धारित करना एक तकनीकी और राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है।' डॉ. कुमार ने कहा, 'पीएम 2.5 का स्तर 22 माइक्रोग्राम क्षति के पैमाने पर एक सिगरेट पीने के बराबर है। पीएम 2.5 अगर 250 पर पहुँच जाये तो यह 12 सिगरेट पीने के बराबर है। प्रदूषित शहरों में लोगों को सिगरेट पीने की लत अधिक लगती है और इस कारण युवा में ही लंग कैंसर के अधिक मामले देखे जाते हैं।" स्विच ऑन फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव कंसलटेंट अजय मित्तल ने कहा, "वायु प्रदूषण वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है।इसके लिए तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता है।" बोस इंस्टिट्यूट के डॉ अभिजीत चटर्जी ने कहा, "सॉलिड वेस्ट और बायो मास को जलाना वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। इन दोनों पर नियंत्रण की आवश्यकता है। इनसे कार्सिनोजेनिक निकलता है जो वायु प्रदूषण का प्रमुख कारक है।

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