स्वदेश निर्मित यान में यात्रा करेगा अगला भारतीय अंतरिक्ष यात्री : जितेंद्र सिंह

‘गगनयान’ में जायेंगे दो अंतरिक्ष यात्री
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केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह-
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नयी दिल्ली : केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा है कि शुभांशु शुक्ला की सफल अंतरिक्ष यात्रा ने भारत की भावी यात्राओं के लिए विशेषज्ञता प्रदान की है और अगला भारतीय अंतरिक्ष यात्री स्वदेश निर्मित अंतरिक्ष यान में यात्रा करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने मानव अंतरिक्ष यान मिशन ‘गगनयान’ के प्रक्षेपण की तैयारी कर रहा है, जो 2027 में किसी समय दो अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जायेगा।

शुक्ला के आईएसएस पर प्रवास ने ‘गगनयान’ के लिए अनुभव प्रदान किया

सिंह ने एक विशेष वीडियो साक्षात्कार में कहा कि एक्सिओम-4 मिशन के तहत शुक्ला के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर तीन सप्ताह के प्रवास ने भारत को अपनी ‘गगनयान परियोजना’ की तैयारी के लिए अंतरिक्ष मिशनों को संभालने में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि और अनुभव प्रदान किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि अगला मिशन पूरी तरह से स्वदेशी होगा, बिल्कुल शुरुआत से इसका विकास भारत में ही किया जायेगा। भारतीय अंतरिक्ष यात्री पहली बार किसी भारतीय अंतरिक्ष यान में जायेंगे। यह हमें दुनिया के उन विशिष्ट देशों की श्रेणी में भी शामिल कर देगा जो वास्तव में ऐसा करने में सक्षम रहे हैं। और यह हमारे भविष्य के प्रयासों का मार्ग भी प्रशस्त करेगा, जिसमें अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना भी शामिल है।

भारत भी अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की दिशा में काम कर रहा

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि भारत भी अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की दिशा में काम कर रहा है और इसके चालू होने पर विदेशी प्रयोगों और अंतरिक्ष यात्रियों की मेजबानी के लिए तैयार है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का संचालन पांच अंतरिक्ष एजेंसियों - नासा, रोस्कोस्मोस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एअरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के सहयोग से किया जाता है। चीन का अपना अंतरिक्ष स्टेशन तियांगोंग है। ससिंह ने कहा कि हम अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की आशा कर रहे हैं। संभवतः यह वर्ष 2035 तक हो जायेगा और हमने इसका नाम भारत अंतरिक्ष स्टेशन रखने का फैसला भी कर लिया है।

‘यह व्यावसायिक मिशन नहीं वैज्ञानिक मिशन था’

सिंह ने इस आलोचना को खारिज कर दिया कि शुक्ला की आईएसएस यात्रा एक व्यावसायिक मिशन थी और इसका कोई वैज्ञानिक महत्व नहीं था। उन्होंने कहा कि यह आलोचना समझ की कमी दर्शाती है। दरअसल शुक्ला उन चारों (अंतरिक्ष यात्री जो एक्सिओम-4 मिशन का हिस्सा थे) में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। इसरो ने शुक्ला को आईएसएस भेजने के लिए एक्सिओम स्पेस को 550 करोड़ रुपये का भुगतान किया है और इस लागत में उनके और बैकअप क्रू प्रशांत बालकृष्णन नायर के कई महीनों के प्रशिक्षण का खर्च शामिल है। सिंह ने कहा कि कमांडर पैगी ह्विटसन निश्चित रूप से अनुभवी हैं जबकि शुभांशु वह पायलट थे जिन्होंने आईएसएस पर बहुत सारे प्रयोग किये। उन्होंने कहा कि शुक्ला द्वारा किये गये अध्ययनों के परिणाम पूरी मानव जाति के लिए लाभकारी होंगे।

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला

उन्होंने कहा कि शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा ने भारत की भावी यात्राओं के लिए अपार अनुभव और विशेषज्ञता प्रदान की और देश को बड़े अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए बेहतर स्थिति में भी रखा है लेकिन सबसे बढ़कर, यह दुनिया भर में एक बहुत बड़ा संदेश भी देता है। अब, जहां तक अंतरिक्ष क्षेत्र का संबंध है, भारत परिपक्व हो चुका है। सिंह ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष में अग्रणी देशों में शामिल कर दिया, जब इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक अंतरिक्ष यान उतारा। उन्होंने कहा कि इस मिशन की सफलता और शुभांशु द्वारा अंतरिक्ष में किये गये अपने तरह के पहले स्वदेशी प्रयोगों ने यह संदेश भी दिया है कि भारत आज चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है। सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के सरकार के फैसले से भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है, जिसके 2033 तक वर्तमान 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 44 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।

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