

नई दिल्ली : भारत ने अब लेजर हथियार प्रणाली से दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता हासिल कर ली है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तरफ से पहली बार आंध्र प्रदेश के कुरनूल में इस 30 किलोवाट लेजर आधारित हथियार प्रणाली की क्षमता का प्रदर्शन किया गया। इस प्रणाली का उपयोग करके फिक्स्ड विंग एअरक्राफ्ट, मिसाइल और स्वार्म ड्रोन (एक साथ आने वाले कई ड्रोन) को निशाना बनाया गया। इसके साथ ही भारत अमेरिका, चीन और रूस सहित उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनके पास यह क्षमता है।
इजराइल भी इस क्षेत्र में काम कर रहा
डीआरडीओ के प्रमुख डॉ. समीर वी कामत ने बताया कि इस कामयाबी में कई डीआरडीओ प्रयोगशालाओं, उद्योग और शैक्षिणक संस्थानों ने मिलकर काम किया है। उन्होंने कहा कि हम अभी और भी ताकतवर तकनीकों पर काम कर रहे हैं। इनमें उच्च ऊर्जा माइक्रोवेव, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स जैसी अन्य उच्च ऊर्जा प्रणालियां शामिल हैं। ये तकनीकें हमें स्टार वार जैसी क्षमता प्रदान करेंगी। उन्होंने बताया कि भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ने लेजर हथियार प्रणाली का प्रदर्शन किया है। इजराइल भी इसी तरह की क्षमताओं पर काम कर रहा है। हम इस प्रणाली का प्रदर्शन करने वाले दुनिया के चौथे या पांचवें देश हैं।
2035 तक तैयार होगा पहला 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ विमान
भारत के पहले 5वीं पीढ़ी के स्टील्थ विमान एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एअरक्राफ्ट (एएमसीए) के बारे में पूछे जाने पर डीआरडीओ अध्यक्ष ने कहा कि एक नया प्लेटफॉर्म विकसित करने में 10 से 15 साल लग जाते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (सीसीएस) से परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद हमने यह सफर 2024 में ही शुरू किया और हम 2035 का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
एईआरओ इंजन भी बनायेगा डीआरडीओ
डीआरडीओ अध्यक्ष ने कहा कि हम एक एईआरओ इंजन परियोजना पर भी काम शुरू करना चाहते हैं। यह तकनीक बहुत जटिल है। इसलिए हम जोखिमों को कम करने के लिए एक विदेशी कंपनी ओईएम के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि चौथी पीढ़ी के इंजन ‘कावेरी’ से हमने बहुत कुछ सीखा है लेकिन वर्तमान में इंजन तकनीक छठी पीढ़ी में चली गयी है। इसलिए जोखिमों को कम करने के लिए डीआरडीओ विदेशी कंपनी के साथ काम करना चाहता है।