नयी दिल्ली : अशोक चक्र प्रथम, अशोक चक्र द्वितीय और अशोक चक्र तृतीय के रूप में 1950 के दशक में शुरू किये गये शांतिकाल के शीर्ष वीरता पुरस्कारों के नाम 1967 में बदलकर क्रमशः ‘अशोक चक्र’, ‘कीर्ति चक्र’ और ‘शौर्य चक्र’ किये गये थे।
‘अशोक चक्र’ शांतिकाल का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार
एक दुर्लभ अभिलेखीय सरकारी दस्तावेज के अनुसार राष्ट्रपति सचिवालय ने 27 जनवरी, 1967 को नामकरण परिवर्तन की अधिसूचना जारी की थी और इसकी एक छवि को भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (NAI) द्वारा यहां आयोजित एक प्रदर्शनी के भाग के रूप में कई अन्य ऐतिहासिक आधिकारिक दस्तावेजों के साथ प्रदर्शित किया गया है। ‘सुशासन और अभिलेख 2025’ नाम से आयोजित इस प्रदर्शनी में राष्ट्रपति सचिवालय, निर्वाचन आयोग तथा गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय सहित विभिन्न मंत्रालयों के भंडारों से प्राप्त मूल्यवान अभिलेख प्रदर्शित किये गये हैं। सैन्य अलंकरणों के नाम बदलने संबंधी अधिसूचना को गृह मंत्रालय से प्राप्त दस्तावेजों को प्रदर्शित करने वाले एक पैनल पर पुनः प्रकाशित किया गया है। ‘अशोक चक्र’ भारत का शांतिकाल का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है, जिसके बाद क्रमशः ‘कीर्ति चक्र’ और ‘शौर्य चक्र’ आते हैं।
अधिसूचना मुख्य बिंदुओं का उल्लेख
राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से जारी उक्त अधिसूचना के अनुसार राष्ट्रपति अशोक चक्र प्रथम, अशोक चक्र द्वितीय और अशोक चक्र तृतीय का नाम बदलकर क्रमशः ‘अशोक चक्र’, ‘कीर्ति चक्र’ और ‘शौर्य चक्र’ कर रहे हैं। इसमें ‘अशोक चक्र’ से संबंधित मुख्य बिंदुओं का भी उल्लेख किया गया है, तथा पैनल में वीरता पुरस्कार के साथ मिलने वाले पदक की तस्वीर भी है। इसमें कहा गया है कि यह अलंकरण पदक के रूप में होगा और इसे ‘अशोक चक्र’ (जिसे आगे चक्र कहा जायेगा) कहा जायेगा। यह चक्र ‘अत्यंत विशिष्ट वीरता या शत्रु के विरुद्ध किये गये किसी अन्य साहसपूर्ण कार्य या आत्म-बलिदान’ के लिए प्रदान किया जायेगा।
मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता है चक्र
अधिसूचना में कहा गया कि यह चक्र मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता है। अधिसूचना के अनुसार पदक गोलाकार होगा, जिसका व्यास 1.38 इंच होगा। पदक सोने का बना होगा। पदक के अग्रभाग पर बीच में अशोक चक्र की प्रतिकृति उकेरी जायेगी। मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों को कर्तव्य के दौरान अदम्य साहस और असाधारण वीरता प्रदर्शित करने के लिए छह कीर्ति चक्र प्रदान किये थे, जिनमें से चार मरणोपरांत दिये गये थे।