नयी दिल्ली : गुवाहाटी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ताओं ने बांस के बने ‘कंपोजिट पैनल’ विकसित किये है जो बंकरों और रक्षा स्थलों के निर्माण में पारंपरिक लकड़ी, लोहे और अन्य धातुओं की जगह ले सकते हैं।
सेना भी कर रही विकसित ‘कंपोजिट पैनल’ का परीक्षण
अधिकारियों के अनुसार बांस मिश्रित पदार्थों में धातु घटकों के बराबर मुड़ने की ताकत होती है और ये बुलेटप्रूफ भी होते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ‘कंपोजिट पैनल’ का परीक्षण भारतीय सेना द्वारा भी किया जा रहा है। आईआईटी-गुवाहाटी की स्टार्ट-अप कंपनी ‘एडमेका कंपोजिट प्राइवेट लिमिटेड’ ने प्रयोगशाला स्तर पर बांस से बने मिश्रित घटकों का निर्माण कर उनके यांत्रिक गुणों का परीक्षण किया है।
विकसित किये ‘आई-सेक्शन बीम’ और ‘फ्लैट पैनल’
उन्होंने बताया कि शोधकर्ताओं की टीम ने पहली बार बांस की पट्टियों और ‘एपॉक्सी’ रॉल का उपयोग कर ‘आई-सेक्शन बीम’ और ‘फ्लैट पैनल’ जैसे छह-फुट संरचनात्मक घटक विकसित किये हैं। बेहतर मजबूती और वजन झेलने की क्षमता के कारण ग्लास फाइबर, कार्बन फाइबर का व्यापक रूप से ‘एयरोस्पेस’, सिविल और नौसेना क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है लेकिन उनके उत्पादन व निपटान के दौरान महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियां होती हैं।
हरित विकल्पों के लिए वैश्विक प्रयास के साथ आईआईटी-गुवाहाटी
आईआईटी-गुवाहाटी की प्रोफेसर पूनम कुमारी ने बताया कि पेड़ों की कटाई पर बढ़ते प्रतिबंधों और हरित विकल्पों के लिए वैश्विक प्रयास के साथ आईआईटी-गुवाहाटी के शोधकर्ता बांस से बनी मिश्रित सामग्री को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में तलाश रहे हैं। तेजी से बढ़ने और नवीकरणीय प्रकृति के लिए मशहूर बांस चार से पांच वर्ष में काफी बड़ा हो जाता है जबकि साल या सागौन जैसे पारंपरिक पेड़ लगभग 30 साल में बढ़ते हैं। बांस हल्का, पर्यावरण के अनुकूल, स्थानीय रूप से उपलब्ध है और ऐतिहासिक रूप से फर्नीचर, झोपड़ियों और कॉटेज बनाने में उपयोग किया जाता है। बांस का उपयोग कर तैयार किए गए ‘सैंडविच कंपोजिट ब्लॉक’ का बंकर सुरक्षा सहित रक्षा अनुप्रयोगों के लिए भी सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।