कृत्रिम प्रकाश के युग में लुप्त होता जा रहा है यह प्राचीन संकेत
चंद्र चक्र अब भी मानव नींद को प्रभावित करता है
लंदन : मनुष्यों और ज्यादातर जानवरों में एक आंतरिक चंद्र घड़ी होती है, जो चंद्रमा की 29.5 दिवसीय लय के अनुसार संचालित होती है। यह घड़ी कई प्रजातियों की नींद, प्रजनन और प्रवासन की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है लेकिन कृत्रिम प्रकाश के युग में यह प्राचीन संकेत लुप्त होता जा रहा है। यह शहरों की रोशनी, स्क्रीन और उपग्रहों की चमक में धुंधला पड़ता जा रहा है।
प्रकाश के संकेतों पर निर्भर है आंतरिक जैविक घड़ी
जिस प्रकार सर्कैडियन लय पृथ्वी के 24 घंटे के घूर्णन के साथ समय का ध्यान रखती है, उसी प्रकार कई जीव चंद्रमा की धीमी लय का भी ध्यान रखते हैं। सर्कैडियन लय लगभग 24 घंटे की एक आंतरिक जैविक घड़ी है जो नींद और जागने के चक्र सहित शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है। दोनों प्रणालियां प्रकाश के संकेतों पर निर्भर करती हैं और हाल में महिलाओं के मासिक चक्रों का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन से पता चला है कि जैसे-जैसे पृथ्वी कृत्रिम रोशनी से अधिक उजली होती जा रही है, वैसे-वैसे वे प्राकृतिक भिन्नताएं, जिन्होंने कभी जैविक समय की संरचना तय की थी, अब धुंधले पड़ते जा रहे हैं।
गुरुत्वाकर्षण चक्र से जैविक लय भी सूक्ष्म रूप से प्रभावित!
कई शोध बताते हैं कि चंद्र चक्र (लूनर साइकिल) अब भी मानव नींद को प्रभावित करता है। वर्ष 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि अर्जेंटीना की टोबा (जिन्हें कोम भी कहा जाता है) स्वदेशी समुदायों में लोग पूर्णिमा (फुल मून) से पहले की तीन से पांच रातों में 30 से 80 मिनट देर से सोने जाते थे और उनकी नींद 20 से 90 मिनट तक कम हो जाती थी। इसी अध्ययन में सिएटल के 400 से अधिक छात्रों में भी, शहर के भारी प्रकाश प्रदूषण (लाइट पॉल्यूशन) के बावजूद इसी तरह के हालांकि कमजोर, प्रभाव दिखाई दिये। ऐसे गुरुत्वाकर्षण चक्र प्रकाश-संबंधी संकेतों के साथ-साथ जैविक लय को भी सूक्ष्म रूप से प्रभावित कर सकते हैं। प्रयोगशाला अध्ययनों ने इन निष्कर्षों की पुष्टि की है। प्रतिभागियों ने पूर्णिमा के आसपास नींद की गुणवत्ता में गिरावट की भी शिकायत की जबकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके डेटा का विश्लेषण चंद्र कलाओं के आधार पर किया जा रहा था।
शारीरिक प्रक्रियाओं पर कृत्रिम रोशनी का असर
संभवतः मनुष्यों में चंद्र लय का सबसे उल्लेखनीय प्रमाण यूरोप और अमेरिका में 176 महिलाओं के दीर्घकालिक मासिक धर्म रिकॉर्ड का विश्लेषण करने वाले हाल के अध्ययन से मिलता है। वर्ष 2010 के आसपास से पहले, जब LED लाइटिंग और स्मार्टफोन का इस्तेमाल व्यापक हो गया था, कई महिलाओं के मासिक धर्म चक्र पूर्णिमा या अमावस्या के आसपास शुरू होते थे। इसके बाद यह समकालिकता काफी हद तक लुप्त हो गयी और केवल जनवरी में ही कायम रही, जब चंद्रमा-सूर्य-पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव सबसे प्रबल होता है।