

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा लंबे समय से सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक सहभागिता का प्रतीक रही है, लेकिन पिछले एक दशक में यह धीरे-धीरे एक मजबूत राजनीतिक हथियार के रूप में बदल गयी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस परिवर्तन की अगुवाई करते हुए दुर्गापूजा को न केवल एक धार्मिक आयोजन, बल्कि व्यापक जनसंपर्क और सांस्कृतिक नेतृत्व स्थापित करने का साधन बना दिया है।
थीम सॉन्ग लिखने से लेकर हजारों पूजा के उद्घाटन तक मुख्यमंत्री की सक्रिय भागीदारी इस बात का संकेत है कि यह महोत्सव अब सरकार की नीतियों और छवि निर्माण का अहम हिस्सा बन चुका है। राज्य सरकार द्वारा दिया जाने वाला पूजा अनुदान, जो सात सालों में 10,000 रुपये से बढ़कर 1,10,000 रुपये हो गया है, 2025 में 45,000 से अधिक पूजा समितियों तक पहुंच चुका है।
इसके अलावा, बिजली बिल और दमकल सेवाओं में भी छूट दी गयी है, जिससे सरकार का प्रभाव पूजा आयोजन में और भी गहरा हुआ है। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह रणनीति कई स्तरों पर प्रभावी है। एक ओर ममता बनर्जी पूजा के जरिए आम जनता, विशेषकर मध्यवर्ग और निम्नमध्यमवर्ग के बीच भावनात्मक जुड़ाव बना रही हैं तो दूसरी ओर वे भाजपा की हिंदुत्व आधारित राजनीति को स्थानीय सांस्कृतिक प्रतीकों से टक्कर दे रही हैं, जो बंगाल की परंपरा और अस्मिता पर केंद्रित है।
वाम मोर्चे की सरकारें दुर्गापूजा से दूरी बनाकर चलती थीं, जिससे सत्ता और सांस्कृतिक आयोजन के बीच एक रिक्तता बनी रही। ममता बनर्जी ने उस खालीपन को भरा और उसे जनसंवाद का माध्यम बना दिया। दुर्गापूजा आज ममता सरकार के लिए न केवल सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का अवसर है, बल्कि राजनीतिक लाभ प्राप्त करने और विपक्ष को सामाजिक व सांस्कृतिक स्तर पर अप्रासंगिक करने का भी प्रभावशाली मंच बन चुकी है।