नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की लोगों से मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज को रोकने की बार बार की गयी अपील के बाद अब संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी कहा है कि हमें एक समाज के रूप में आगे बढ़ना चाहिए, अतीत में नहीं फंसे रहना चाहिए।
मंदिर-मस्जिद विवाद : समाज में और अधिक शत्रुता पैदा होगी
होसबाले ने आरएसएस की कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका ‘विक्रमा’ को दिये एक इंटरव्यू में भारत में आये दिन बढ़ रहे नये मंदिर-मस्जिद विवाद चिंता जताते हुए कहा है कि अगर हम 30,000 मस्जिदों को, यह दावा करते हुए कि वे मंदिरों को तोड़कर बनायी गयी हैं, खोदना शुरू कर दें तो भारत किस दिशा में जायेगा। इससे समाज में और अधिक शत्रुता और नाराजगी ही पैदा होगी।
राम मंदिर आंदोलन के समय की स्थिति अलग थी
होसबाले ने आरएसएस के शताब्दी वर्ष के मौके पर हुए इस इंटरव्यू में कई विषयों पर संगठन के विचार स्पष्ट किये। इनमें से कई विचार भारतीय जनता पार्टी और संघ से जुड़े अन्य संगठनों के विचारों से मेल नहीं खाते हैं। उन्होंने मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज पर कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन आरएसएस ने शुरू नहीं किया था। आरएसएस के स्वयंसेवक सांस्कृतिक महत्व के कारण इस आंदोलन में शामिल हुए थे।
विश्व हिंदू परिषद ने किया था तीन मंदिरों का उल्लेख
उन्होंने कहा की उस समय विश्व हिंदू परिषद और धार्मिक नेताओं ने तीन मंदिरों का उल्लेख किया था। अगर कुछ आरएसएस स्वयंसेवक इन तीन मंदिरों को फिर से प्राप्त करने के प्रयासों में शामिल होना चाहते थे तो आरएसएस ने इसका विरोध नहीं किया लेकिन अब स्थिति बहुत अलग है। उन्होंने कहा कि मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज करने से हम अस्पृश्यता को खत्म करने, युवाओं में जीवन मूल्यों को स्थापित करने, संस्कृति की रक्षा करने और भाषाओं को संरक्षित करने जैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने से वंचित रह जायेंगे।
‘तो मस्जिद का मुद्दा अपने आप हल हो जायेगा...’
संघ के सरकार्यवाह ने कहा कि जब मंदिरों की बात आती है, तो क्या किसी इमारत में जो अब एक मस्जिद है, में हिंदू धर्म की तलाश करनी चाहिए या हमें उन लोगों में हिंदू धर्म को जगाना चाहिए जो खुद को हिंदू नहीं मानते हैं। इमारतों में हिंदू धर्म के अवशेषों की खोज करने के बजाय अगर हम समाज में हिंदू धर्म की जड़ों को जगाते हैं, तो मस्जिद का मुद्दा अपने आप हल हो जायेगा।
भारत में लोग एक ही नस्ल के
होसबाले ने दावा किया कि भारत में लोग एक ही नस्ल के हैं और हिंदू धर्म अनिवार्य रूप से मानवतावाद है। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमानों ने अपनी धार्मिक प्रथाओं को बदल दिया होगा लेकिन उन्हें अपनी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक जड़ों को नहीं छोड़ना चाहिए। यह आरएसएस का रुख है। हालांकि उन्होंने कहा कि मुसलमानों या ईसाइयों को हिंदू होने के लिए अपना धर्म छोड़ने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें दूसरों की पूजा के तरीकों से कोई विरोध नहीं है, जब तक कि यह इस देश की संस्कृति के खिलाफ न हो।
शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने पर जोर
होसबाले ने कहा कि आरएसएस ने हमेशा शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनी मातृभाषा को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि बच्चों के लिए सीखना आसान और अधिक स्वाभाविक है जब उन्हें उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जा रहा हो। उन्होंने कहा कि शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने को न केवल एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में देखा जाना चाहिए बल्कि संस्कृतियों को संरक्षित करने के साधन के रूप में भी देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के प्रति आकर्षण समझ में आता है लेकिन हमें एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है।
भाषा विवाद पर भी बोले संघ के नेता
सरकार्यवाह ने ऐसी आर्थिक योजनाएं तैयार किये जाने का भी आह्वान किया जो क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षित लोगों के लिए नौकरियां प्रदान करें। उन्होंने कहा कि बुजुर्गों, न्यायाधीशों, शिक्षा विशेषज्ञों, लेखकों, राजनेताओं और धार्मिक नेताओं को इस पर सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए। तीन-भाषा फॉर्मूले का उचित कार्यान्वयन 95 फीसदी समस्या का समाधान कर सकता है। समस्याएं तब पैदा होती हैं जब भाषा का राजनीतिकरण किया जाता है। हमारे देश ने हजारों वर्षों से भाषाई विविधता के भीतर एकता बनाये रखी है।
‘आरएसएस केवल एक राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता’
होसबाले ने कहा कि यह गलत है कि किसी विशेष राजनीतिक समूह से संबंधित लोगों को देशभक्त के रूप में पहचाना जाये और दूसरों को गद्दार कहा जाये। उन्होंने कहा कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद सामान्य लक्षण हैं। उन्होंने कहा कि देश में कई राजनीतिक दलों का अस्तित्व इसकी एकता में बाधा नहीं है। उन्होंने कहा कि यह मानना गलत है कि आरएसएस केवल एक राजनीतिक दल का समर्थन करता है।