यादों को मिटाने की कोशिश में मददगार बना हाई कोर्ट

खुद वे बेटे के नाम से पति का उपनाम हटाने की अपील
यादों को मिटाने की कोशिश में मददगार बना हाई कोर्ट
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : वक्त भर चला है जिन जख्मों को तुम उन्हें क्यों छेड़े जा रहे हो : शायद इसी तरह के पशोपेश से एक महिला गुजर रही थी। इसी लिए एक्स की तरफ से महिला और उसके बेटे के नाम से पति के उपनाम को हटाने की अर्जी केएमसी में दी गई थी। जब नौकरशाही ने नहीं सुनी तो उसने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी गई। जस्टिस कौशिक चंद ने मामले की सुनवायी के बाद दो सप्ताह के अंदर उपनाम हटाये जाने का आदेश केएमसी को दिया है।

एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल ने यह जानकारी देते हुए कहा कि तलाक किसी भी सूरत में सुखद नहीं होता है। तिल तिल कर के बसाया हुआ घर उजड़ जाता है। इसकी यादें पीड़ा देती रहती हैं। इसीलिए एक्स ने कोलकाता नगरनिगम में महिला के नाम से पति के उपनाम और बेटे के नाम से पिता के उपनाम को हटाने के लिए आवेदन दिया था। पति विदेश में रहता है और उसका बेटे से कोई ताल्लुक नहीं रह गया है। सरकार उपनाम को हटा कर चटर्जी करने की अपील की गई थी। केएमसी की तरफ से कहा गया कि बर्थ रिकार्ड में किसी भी तरह का बदलाव करने का अधिकार उनके पास नहीं है। इसमें सिर्फ तथ्यों के भूल को सुधारा जा सकता है, कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं। जस्टिस कौशिक चंद ने अपने आदेश में कहा है कि कोलकाता म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट की धारा 454 के तहत नगरनिगम को बच्चे का नाम बदलने का अधिकार है। कहा है कि वे निगम की इस दलील से सहमत नहीं हैं कि सिर्फ नाम ही बदलने का अधिकार है। जस्टिस चंद ने कहा है कि धारा 454 के तहत नाम में उपनाम भी शामिल है। इस तरह नगरनिगम बच्चे के नाम के साथ उसके उपनाम को भी बदल सकता है। इसके साथ एक पांच साल की पाबंदी भी है। जस्टिस चंद ने अपने आदेश में कहा है कि यह पाबंदी अंगद का पांव नहीं है और कोर्ट परिस्थितियों के मद्देनजर इसमें छूट दे सकता है। जस्टिस चंद ने आदेश दिया है कि अगर इस तरह का आवेदन किया जाता है तो दो सप्ताह के अंदर इस मामले में कार्रवाई करनी पड़ेगी।

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