सीआरपीएफ के बर्खास्त जवान को हाई कोर्ट से नहीं मिली राहत

फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्ति का मामला
सीआरपीएफ के बर्खास्त जवान को हाई कोर्ट से नहीं मिली राहत
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : सीआरपीएफ के एक बर्खास्त जवान को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली। जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी ने उसकी अपील को खारिज कर दिया। उसने अपीलेट ऑथरिटी के बर्खास्तगी के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। यहां गौरतलब है कि फर्जी सर्टिफिकेट देकर नौकरी हासिल करने के आरोप में उसे सेवा से बर्खास्त किया गया है।

एडवोकेट स्नेहा सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संजय सिंह ने यह अपील दायर की थी। उसकी नियुक्ति 2004 में सीआरपीएफ के जवान के पद पर की गई थी। उसने नौकरी के लिए आवेदन करते समय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक का मार्कशीट और सर्टिफिकेट जमा किया था। बाद में जांच में पता चला कि उसका उच्च माध्यमिक का मार्कशीट और सर्टिफिकेट तो असली था, जबकि माध्यमिक का मार्कशीट और सर्टिफिकेट फर्जी था। जब माध्यमिक का मार्कशीट और सर्टिफिकेड बोर्ड के पास भेजा गया तो बोर्ड की तरफ से कह दिया गया कि इस क्रमांक नंबर के मार्कशीट और सर्टिफिकेट को बोर्ड ने जारी ही नहीं किया था। ज्वायनिंग के समय पीटिशनर ने मार्कशीट और सर्टिफिकेट की मूल कापी को जमा किया था। जब इसका वेरिफिकेशन शुरू हुआ तब जाकर इसका खुलासा हुआ। उसे चार्जशीट दी गई और उसने इसका जवाब भी दिया। अनुशासन समिति ने उसके जवाब को असंतोषजनक बताते हुए खारिज कर दिया। इसके बाद पीटिशनर ने एक अपील दायर की पर वह भी खारिज कर दी गई। इसके बाद उसने एक रीविजनल पीटिशन दायर किया पर आईजी ने उसे भी खारिज कर दिया। इसके बाद उसने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। जस्टिस चटर्जी ने अपने फैसले में कहा है कि अनुशासनात्मक मामलों में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश बहुत कम ही होती है। जस्टिस चटर्जी ने नौकरी को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह नौकरी देेने वाले और नौकरी करने वाले के बीच एक करार है। अगर इसमें फर्जी दस्तावेज जमा किए जाए तो यह करार अपने आप में बेमतलब हो जाता है। जस्टिस चटर्जी ने कहा है कि इन परिस्थितियों में हाई कोर्ट के दखल देने की कोई गंजाइश नहीं है।

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