

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : यह कैसा तकनीकी बदलाव है जो मददगार बनने के बजाए राह का रोड़ा बन जाता है। चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के पेंशन के मामले अपना फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट के जस्टिस गौरांग कांथ ने राज्य सरकार से सवाल किया है। कहा है कि डिजिटल बदलाव का हवाला देकर अफसर अपनी गर्दन नहीं बचा सकते हैं। जस्टिस कांथ ने याद दिलाया है कि पेंशन एक दान नहीं है, यह एक कानूनी अधिकार है। जस्टिस कांथ ने आदेश दिया है कि चार सप्ताह के अंदर सारी औपचारिकताओं को पूरा करके सेवानिवृत्त के बाद की सेवाओं और पेंशन का भुगतान किया जाए।
एडवोकेट विपासा जायसवाल बताती हैं कि प्रदीप हरिजन और अन्य ने पेंशन भुगतान के लिए हाई कोर्ट में रिट दायर की थी। जस्टिस कांथ ने अपने फैसले में कहा है कि चतुर्थ श्रेणी के इन कर्मचारियों ने कई दशक तक हुगली चुचुड़ा नगरपालिका को अपनी सेवा प्रदान किया है। अब सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें उनका हक नहीं मिल रहा है। कोर्ट यह नहीं समझ पा रहा है कि आम लोगों की सुविधा के लिए विकसित किया गया सिस्टम कैसे उनके अहित में काम करने लगा है। डिजिटल बदलाव का हवाला देकर अफसर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं। यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि बदलाव से कर्मचारियो का भला हो। हुगली चुचुड़ा नगरपालिका के प्रदीप हरिजन सहित ऐसे 148 कर्मचारी हैं जो 30-35 साल से काम कर रहे हैं। ये नगरपालिका के नियमित कर्मचारी हैं। इस नगरपालिका में 2021 से ऑन लाइन सैलरी मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया गया था। प्रदीप हरिजन 2023 में सेवानिवृत्त हो गया था। इसके बावजूद उसे न तो सेवानिवृत्ति के बाद का भुगतान हुआ है और न ही पेंशन चालू की गई है। उसके साथ ही इस तरह के और भी कर्मचारी हैं। जब तक पोर्टल में सर्विस का अपडेट नहीं होता है तब तक ये सुविधाएं नहीं दी जा सकती है। जस्टिस कांथ ने चार सप्ताह के अंदर सारी औपचारिकताओं को पूरा करने और भुगतान की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।