विधवा ने लड़ कर हासिल किया पति के पेंशन आदि का हक

सात साल तक मुकदमा चलने के बाद हाई कोर्ट का भुगतान का आदेश
विधवा ने लड़ कर हासिल किया पति के पेंशन आदि का हक
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : पति एक स्कूल में टीचर-इन-चार्ज थे और 2009 में सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके बाद पेंशन और सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली सारी रकम और सुविधाएं नौकरशाही के मकड़जाल में उलझ कर रह गईं। पति का हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ते-लड़ते निधन हो गया। पर विधवा ने हार नहीं मानी और सात साल तक मुकदमा लड़ने के बाद पति का हक हासिल कर लिया। जस्टिस विश्वजीत बसु ने सारा भुगतान किए जाने और सुविधाएं दी जाने का आदेश दिया है।

एडवोकेट स्नेहा सिंह बताती है कि पीटिशनर कानन बाला ठोकदार की अपील थी कि पति के बकाया पेंशन और सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली रकम का भुगतान किया जाए। इसके साथ ही फेमिली पेंशन की सुविधा भी दी जाए। पति मालदह के गंगादेवी हाई स्कूल में टीचर-इन-चार्ज के पद पर कार्यरत थे। सेवानिवृत्ति के एक साल पहले चार लाख रुपए के गबन का आरोप लगाते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया। वे 2009 के जून में सेवानिवृत्त हो गए। गबन के इस आरोप का हवाला देते हुए पेंशन सहित सारी सुविधाएं रोक दी गईं। उन्होंने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। हाई कोर्ट के एक बेंच ने 2018 की जुलाई में पेंशन शुरू करने का आदेश दिया। इसी दौरान उनका निधन हो गया। इसी मुकाम पर पत्नी काननबाला ने मुकदमे की डोर अपने हाथों में थाम ली और लड़ाई के मैदान में उतर आयी। इस मामले का सबसे बड़ा पेंच ये था कि इसी गबन का हवाला देते हुए स्कूल कोई बकाया नहीं है का प्रमाणपत्र नहीं दे रहा था। इसके बगैर भुगतान नहीं हो पा रहा था। कोर्ट इस मुकाम पर पहुंचा है कि गबन का यह आरोप साबित नहीं हो पाया है। सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली सुविधाओं पर संबंधित व्यक्ति अकेला हकदार होता है। इस रकम से किसा बकाया का समायोजन नहीं किया जा सकता है। जस्टिस बसु ने स्कूल को कोई बकाया नहीं प्रमाणपत्र दिए जाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही सारे बकाये का भुगतान और फेमिली पेंशन की सुविधा दी जाने का आदेश भी दिया है। अब राज्य सरकार चाहे तो उस रकम की वसूली के लिए अलग से मुकदमा दायर कर सकती है।


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